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    Karwa Chauth Vrat पर अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जानें ये महत्वपूर्ण बातें

    Updated: Sun, 20 Oct 2024 08:32 AM (IST)

    सनातन धर्म में करवाचौथ (Karwa Chauth 2024) का अधिक महत्व है। मौसम बदलने की मान्यता वास्तव में कार्तिक का महीना उत्सव का आंगन है असंख्य मंगलकार्यों की चौखट है सुख समृद्धि आनंद तथा कर्म का प्रतीक है। मौसम में बदलाव के आनंद की आहट करवाचौथ से ही आने लगती है। कहा जाता है कि करवाचौथ का त्योहार अपने साथ करवा भर जाड़ा ले आता है।

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    Karwa Chauth 2024: करवा चौथ का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। कहा जाता है कि करवा चौथ अन्य पर्वों की तुलना में उतना प्राचीन नहीं है किंतु लोकप्रियता के आधार पर शायद आज सबसे अधिक मान्य पर्व है। कभी पंजाब, दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तरप्रदेश तक सीमित करवाचौथ आज उत्तर भारत की सौभाग्यवती स्त्रियों का सबसे प्रिय त्योहार है। पति की दीर्घ आयु, स्वास्थ्य व अटूट सौभाग्य की कामना के लिए किए जाने वाले इस निराहार- निर्जल पर्व की सांस्कृतिक चेतना पर मालिनी अवस्थी का आलेख...

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    आज सुहाग की रात, चंदा तुम उगिहो

    चंदा तुम उगिहो, सूरज जनि उगिहो।

    ‘ओ चंद्रमा, आज सुहाग की रात है, तुम उदित हो, आज तुम बने रहना, ओ सूरज, तुम कल उदित मत होना!’

    चंद्रमा मनसो जात:

    सुहागिन महिलाओं के लिए कार्तिक माह होता है खास

    अर्थात्- विराट् पुरुष के मन से चंद्रमा का प्राकट्य हुआ है इसीलिए चंद्रमा मन का प्रतीक है, प्रेम का प्रतीक है। चंद्रमा लालित्य है, मन की प्रसन्नता है और इंद्रियों के लिए प्रकाश है। चंद्रमा एकांत का साथी है, जो हर रात आकाश में दिव्य आभा के साथ बैठता है। प्रतिनिशा बढ़ती-घटती कलाओं के साथ मुस्कुराता है। पूर्णिमा की रात चंद्रमा के सौंदर्य पर कवि साहित्यकार सबने कितना कुछ रचा है, लेकिन विवाहित स्त्रियों से पूछिए, वे कहेंगी उन्हें कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष चतुर्थी का चांद सबसे सुंदर लगता है। निश्चय ही करवाचौथ पर चंद्रमा का दर्शन सबसे सुंदर अनुभूति है।

    करवाचौथ के दिन चंद्रदर्शन का है विशेष महत्व

    त्योहारों-पर्वों का प्रथम संस्कार परिवार में ही मिलता है। करवाचौथ की स्मृतियां मुझे मेरे बचपन में ले जाती हैं। इस दिन मां, ताई जी, मौसी सबका रूप देखते ही बनता था! यह शृंगार का ओज था या फिर भूख-प्यास से निर्लिप्त देह के विश्वास का आध्यात्मिक समर्पण, जो दिन भर रसोई में व्यंजन बनाकर, पैरों में महावर लगाती मां जब भाई से कहतीं, ‘अरे पुष्कर, जा छत पर जाकर देख, चंद्रमा निकला कि नहीं?’ तो भाई के साथ हम बहनें भी छत की ओर दौड़ जाती थीं। चंद्रमा को देखने का यह वार्षिक कौतुक अद्भुत उत्सव में बदल जाता। मुहल्ले-टोले के पुरुष-बच्चे सब अपनी छतों पर चढ़कर आकाश की ओर व्याकुलता से देखने लगते, एक-दूसरे से पूछने लगते, तभी अचानक किसी की आवाज आती- वह देखो, आसमान में लाली, लगता है पेड़ के पीछे चांद निकल आया। इतना सुनते ही हाथों में आरती की थाली लेकर मां, उनके साथ आस-पास की सभी स्त्रियां, बनी-संवरी देवी स्वरूपा स्त्रियां, चंद्रदर्शन की कामना लिए, प्रेम और विश्वास के आशीर्वाद की कामना लिए बाहर निकल आतीं।

    स्त्रियां 16 शृंगार कर शगुन को मनाती हैं अपना सौभाग्य

    सौभाग्य का शगुन भारत व्रत-त्योहार का देश है। हमारी परंपरानुशील संस्कृति, पर्व, व्रत, त्योहार से ऊर्जा लेती हुई नित्य नवीन हो बढ़ती चलती है। संस्कृति के इस निर्मल प्रवाह की रक्षिकाएं और पोषिकाएं हमारी मातृशक्ति है, अतः स्वाभाविक है कि सभी पर्वों के मूल में परिवार की कुशलता की आकांक्षा प्रबल होती है। इनमें भी सौभाग्य एवं मातृत्व के व्रत-त्योहारों के प्रति स्त्रियों में विशिष्ट उत्साह एवं उमंग होता है, यथा हरछठ, बहुराचौथ, हरितालिका तीज पर्व, ज्यूतिया, अहोई अष्टमी, संकष्टी गणेश चतुर्थी आदि अनेक पर्व हैं, किंतु आधुनिक समय में करवाचौथ स्त्रियों का सबसे महत्वपूर्ण एवं लोकप्रिय पर्व बन चुका है। ग्रामीण स्त्रियों से लेकर आधुनिक महिलाओं तक सभी नारियां करवाचौथ का व्रत बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह के साथ रखती हैं। चंद्रमा 16 कलाओं का स्वामी है, यह संभवतः चंद्रमा की प्रेरणा ही है, जो इस दिन स्त्रियां 16 शृंगार कर अपने सौभाग्य का शगुन मनाती हैं।

    व्रत से अखंड सौभाग्य की होती है प्राप्ति

    करवाचौथ के एक सप्ताह पहले से बाजार की सजधज अलग दिखने लगती है और उस पर दुकानों पर स्त्रियों की भरपूर भीड़ त्योहार के उत्साह का प्रसन्न दृश्य उपस्थित करता है। कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को अपने परिवार में प्रचलित प्रथा के अनुसार सौभाग्यवती स्त्रियां पति की दीर्घायु एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए दिन भर उपवास रखकर रात में चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं। चंद्रमा के दर्शन, विधिविधान से पूजन-अर्चन के उपरांत ही भोजन करने का विधान है।

    पूजा के दौरान किया जाता है कथा का पाठ

    प्रकृति का पूजन करवाचौथ की पूजा में कथाएं कही जाती हैं। हमारे यहां इस कथन-श्रवण परंपरा का मूल उद्देश्य भाव का उद्दीपन है। कथा कोई भी हो सकती है, यहां भाव प्रेम और समर्पण का है। करवाचौथ उमंग का पर्व है और इसकी मूल प्रेरणा प्रकृति है। करवाचौथ में चंद्रमा का ही पूजन क्यों होता है, इस पर भी विचार करें तो यही समझ आता है कि चंद्रमा एक विश्वसनीय साथी है। वह हमारा साथ कभी नहीं छोड़ता। वह जहां रहता है, हमें वहां से देखता रहता है। वह हमारे एकांत को, दुख-सुख को, उजाले और अंधेरे पलों को जानता है। अपनी कलाओं में घटता-बढ़ता चंद्रमा हर दिन अलग रूप लेता है। कभी क्षीण और मलिन, कभी पूर्णता से लबालब रोशनी से भरा हुआ। चंद्रमा से अधिक इंसान की कमियां, कमजोरियां और एकाकीपन कौन समझ सकता है। वह समझता है कि हर किसी में थोड़ा सा सूर्य और चंद्रमा होता है। अंधकार और प्रकाश होता है।

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    करवा माता की होती है पूजा

    चंद्रमा नियम से अपने मार्ग पर चलता रहता है, लेकिन अपने स्वभाव के कारण यह धीरे-धीरे प्रभाव डालता है। भला कौन सा दूसरा पिंड है जो पूरे महासागर को किनारे तक खींच सकता है? चंद्रमा अपने शांत स्वरूप में भी बहुत समर्थ है। चंद्रमा को पूजकर सौभाग्य की आश्वस्ति अटूट विश्वास का प्रण है, प्रकृति की सत्ता को स्वीकारने की सौगंध है। इसी विश्वास ने चंद्रमा को चंदा मामा का पद दिया है। इसी श्रद्धा ने करवाचौथ में पूजे जाने वाले करवा को करवा माता का सम्मान दिया है। अवध में हल्दी रंगोली से सजाये करवा की नली से निसृत होती जलधारा को बाल की लट पर गिराती हुई आसमान में एकटक चंद्रमा को देखती हुई सुहागिनें यही आशीर्वाद दोहराती हैं -

    उठो उठो कुलवंतिन नारि

    बारे चंदा का अरघ दियो साई

    जिये हजार बरिस बीरन जीयें कोटि बरिस।

    मौसम बदलने की मान्यता वास्तव में कार्तिक का महीना उत्सव का आंगन है, असंख्य मंगलकार्यों की चौखट है, सुख, समृद्धि, आनंद तथा कर्म का प्रतीक है। मौसम में बदलाव के आनंद की आहट करवाचौथ से ही आने लगती है। कहा जाता है कि करवाचौथ का त्योहार अपने साथ करवा भर जाड़ा ले आता है।

    ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि करवाचौथ के पूजन के दौरान ही सजे -धजे करवे की टोटी से ही जाड़ा निकलता है। करवाचौथ के बाद पहले तो रातों में और फिर धीरे-धीरे वातावरण में ठंड बढ़ती है। प्रेम का अटूट बंधन त्योहार समाज के प्राण हैं और ये हम सबके जीवन में आनंद और ऊर्जा भरने का काम करते हैं। करवाचौथ प्रेम और विश्वास का पर्व है। पर्व मनाने की हर स्त्री की अपनी स्वतंत्रता है.. जी-भरकर मनाइए! कुछ तथाकथित प्रगतिशील स्त्रियां करवाचौथ को स्त्री विरोधी मानती हैं। असल में चांद को देख कविताएं और शायरी करने वाले यह नही समझेंगे कि चंद्रमा मन और मान का प्रतीक है, प्रेम का प्रतीक है और यह प्रतीक युगों युगों से अखंड विश्वास का आधार बना हुआ है। ये सुहाग, शृंगार, प्रेम, व्रत कोई बंधन नहीं, बल्कि युगलों को जोड़ने के लिए बनाए गए हैं। प्रेम के रस को और गाढ़ा करने के लिए बनाए गए हैं। बना रहे सौभाग्य, सजा रहे शृंगार! सभी सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए माता कौशल्या का सीता जी को दिया गया यह आशीर्वाद मंत्र बन सिद्ध हो, यही प्रार्थना है-

    अचल होऊ अहिवातु तुम्हारा

    जब लगि गंग जमुन जलधारा

    आज करवाचौथ की सभी को बहुत-बहुत बधाई!

    (लेखिका पद्मश्री से सम्मानित लोकगायिका हैं)

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