कर्ण का लालन-पालन सूत अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने किया
हिंदू धर्म में पूर्वजन्म की मान्यता है। इस मान्यता के कई उदाहरण हम पौराणिक कथाओं में पढ़ते और सुनते हैं। ऐसा ही पूर्वजन्म का रोचक वृतांत है
हिंदू धर्म में पूर्वजन्म की मान्यता है। इस मान्यता के कई उदाहरण हम पौराणिक कथाओं में पढ़ते और सुनते हैं। ऐसा ही पूर्वजन्म का रोचक वृतांत है महा दानी कर्ण का। कर्ण कुंती के पुत्र थे।
कहा जाता है कि वे कुंती के विवाह के पूर्व जन्में थे। लोक लाज के भय से कुंती ने कर्ण का त्याग कर दिया । कर्ण का लालन-पालन सूत अधिरथ और उसकी पत्नी राधा ने किया।
द्वापरयुग में कर्ण का दुःखमय जीवन दरअसल पूर्वजन्मों का फल था। पुराणों के अनुसार कर्ण पूर्वजन्म में दंबोधव नाम का असुर था, जिसने सूर्य देव का तप कर वरदान मांगा कि उसे एक हजार कवच मिलें। इन कवचों पर वही व्यक्ति प्रहार कर सके, जिसने एक हजार वर्षों तक तप किया हो, जो भी इन कवचों को भेदने की कोशिश करे तो उसकी उसी समय मृत्यु हो जाए। सूर्य देव ने दंबोधव को यह वर दे दिया। इसलिए दंबोधव को सहस्त्रचक्र भी कहा जाता है।
वर पाकर दंबोधव अहंकार के वशीभूत हो गया। राक्षसी प्रवृत्ति होने के कारण उसने ऋषियों और मनुष्यों को परेशान करना शुरू कर दिया। उसने जंगलों का विनाश किया। उसके आतंक से परेशान होकर प्रजापति दक्ष की पुत्री मूर्ति ने भगवान विष्णु की आराधना कर उनसे दंबोधव के अंत का वरदान मांगा। (मूर्ति, माता पार्वती की बहन थीं और उनका विवाह ब्रह्माजी के मानस पुत्रों में से एक धर्म के साथ हुआ था।)
तब भगवान विष्णु ने मूर्ति से कहा, 'मैं स्वयं सहस्त्रचक्र दंबोधव असुर का अंत करूंगा।' समय बीतता गया । कुछ समय बाद मूर्ति ने नर-नारायण नाम के दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया। नर-नारायण के शरीर भले ही अलग थे, लेकिन मन, आत्मा और कर्म से ये दोनों एक थे।
जब नर सहस्त्र कवच से युद्ध में व्यस्त थे तब नारायण योग निद्रा में लीन थे। नर ने सहस्त्र कवच के 999 सुरक्षा कवच काट दिए । जब एक कवच शेष रह गया तो सहस्त्र कवच ने सूर्य लोक में शरण ली।
अब तक नारायण योग निद्रा से जाग चुके थे। नर-नारायण सूर्य लोक पहुंचे। उन्होंने सूर्यदेव से असुर दंबोधव को लौटाने की प्रार्थना की। लेकिन सूर्य देव ने मना कर दिया। सूर्य देव की इस बात नर-नारायण नाराज हो गए।
उन्होंने दंबोधव को शाप दिया कि उन्हें अगले जन्म में अपनी निशाचर करनी का दंड भोगना होगा। इस तरह द्वापर युग में असुर दंबोधव कर्ण का जन्म हुआ, जिसके शरीर पर वो शेष एक कवच मौजूद था।