कर्म ही व्यक्ति के भाग्य और जीवन का निर्माण करते हैं।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि ‘अपने विचारों पर नियंत्रण रखो नहीं तो वे तुम्हारा कर्म बन जाएंगे और अपने कर्मो पर नियंत्रण रखो नहीं तो वे तुम्हारा भाग्य बन जाएंगे।’ कर्म ही व्यक्ति के भाग्य और जीवन का निर्माण करते हैं।
सृष्टि में कोई भी व्यक्ति बिना कर्म किए नहीं रह सकता है। वह या तो विचारों के माध्यम से सक्रिय है अथवा क्रियाओं के माध्यम से या फिर कारण बन कर कर्म में योगदान कर रहा है। जीव-जंतु हों या मनुष्य, कोई भी अकर्मण्य नहीं है और न ही कभी रह सकता है। विद्वानों ने मुख्य रूप से तीन प्रकार के कर्म बताए हैं जिनमें एक होता है क्रियमाण कर्म, जिसका फल इसी जीवन में तुरंत प्राप्त हो जाता है। दूसरा संचित कर्म होता है, जिसका फल बाद में मिलता है। तीसरा होता है प्रारब्ध।
यदि विपरीत परिस्थितियों में भी लोग सुखी रहकर जीवन व्यतीत कर रहे होते हैं तो इसका श्रेय उनके संचित कर्म को जाता है। जब रावण अपने जीवन में अत्यधिक शक्तिशाली एवं सुखी था तब यह उसके संचित कर्म का परिणाम था। मगर उसी रावण के घर कोई दीया जलाने वाला तक नहीं रहा तो यह उसका प्रारब्ध था। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि ‘अपने विचारों पर नियंत्रण रखो, नहीं तो वे तुम्हारा कर्म बन जाएंगे और अपने कर्मो पर नियंत्रण रखो, नहीं तो वे तुम्हारा भाग्य बन जाएंगे।’
संसार में तीन प्रकार के लोग हैं। एक भाग्यवादी, जो कि मानते हैं कि सब कुछ पहले से ही नियत है इसलिए पुरुषार्थ करके भी क्या बदल जाएगा। दूसरे हैं पुरुषार्थवादी, जिन्हें लगता है कि भाग्य कुछ नहीं होता, कर्म ही सब कुछ है। तीसरे होते हैं परमार्थी, जो परमअर्थ अर्थात परमात्मा को ही सब कुछ मानते हुए लाभ-हानि में सम रहकर जीवन व्यतीत करते हैं। मनीषियों ने तीसरी श्रेणी के लोगों को उत्तम प्रवृत्ति का बताया है। ऐसे व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में आनंदमय अर्थात शांत भाव से जीवन-यापन करते हैं।
वस्तुत: कर्म ही हमारे उत्थान और पतन का कारण है। कर्म ही हमारे जीवन की दिशा और दशा तय करता है। अत: हम सबको सदैव हानि पहुंचाने वाले कर्मो से दूरी रखते हुए अच्छे कर्मो का वरण करना चाहिए।
अंशु प्रधान