Kanwar Yatra 2025: कैसे हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत? भगवान परशुराम से है गहरा नाता
सावन के महीने में कावंड यात्रा की शुरुआत होती है। इस दौरान भक्तों को कई नियम का पालन करना पड़ता है, जिससे यात्रा सफल होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कावंड यात्रा भगवान शिव की भक्ति का प्रतीक है। इस यात्रा को करने से भक्त को सभी पापों से छुटकारा मिलता है।

Kanwar Yatra 2025: कांवड़ यात्रा की कथा
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। आषाढ़ पूर्णिमा तिथि के समापन के बाद महादेव को समर्पित सावन के महीने की शुरुआत होती है। सनातन धर्म में इस माह को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस माह में रोजाना भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही सोमवार का व्रत भी किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिव पूजन और सोमवार व्रत करने से मनचाहा वर मिलता है। साथ ही विवाह में आ रही बाधा दूर होती है। इसके अलावा कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra significance 2025) भी शुरू होती है। इस दौरान शिव भक्तों में बेहद खास उत्साह देखने को मिलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कब और कैसे हुई कांवड़ यात्रा की शुरुआत। अगर नहीं पता, तो ऐसे में आइए जानते हैं इसके बारे में।
भगवान परशुराम से जुड़ी है कांवड़ यात्रा की कथा
भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम (Kanwar Yatra and Lord Parshuram connection) थे। उनका जन्म ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ था। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम शिव जी के परम भक्त थे। पौराणिक कथा के अनुसार, कांवड़ यात्रा की शुरुआत भगवान परशुराम ने की थी। एक बार भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से पवित्र जल को लाकर उत्तर प्रदेश के पुरा पहुंचकर महादेव का विधिपूर्वक अभिषेक किया। ऐसा बताया जाता है कि तभी से इस परंपरा को हर साल निभाया जाता है। हर साल कांवड़ यात्रा में अधिक संख्या में भक्त शामिल होते हैं।
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दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra history) की शुरुआत की थी। एक बार श्रवण कुमार के माता-पिता ने गंगा स्नान करने की इच्छा जाहिर की, तो ऐसे में श्रवण कुमार अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार पहुंचे, तो उन्होंने वहां गंगा स्नान किया और माता-पिता के साथ गंगाजल साथ लाए थे। इसके बाद उस जल से महादेव का अभिषेक किया। ऐसा माना जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई।
कब चढ़ेगा कांवड़ यात्रा का जल
वैदिक पंचांग के अनुसार, सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर कांवड़ यात्रा का जल चढ़ता है। इस बार इस तिथि की शुरुआत 23 जुलाई को सुबह 04 बजकर 39 मिनट पर होगी। वहीं, इस तिथि का समापन 24 जुलाई को देर रात 02 बजकर 28 मिनट पर होगी। ऐसे में 23 जुलाई को सावन शिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा।
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