Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कालसर्प एक योग है जो पूर्व जन्म के किसी अपराध के दंड के कारण जन्मकुंडली में होता है

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Tue, 18 Oct 2016 01:29 PM (IST)

    जन्म के समय जो दोष या योग बनते हैं। उन्हें हम उस जातक की कुंडली का अध्ययन कर पता कर सकते हैं। इन्हीं दोष में एक है 'कालसर्प दोष' यह योग विशिष्ट व्यक्तियों को होता है।

    जन्म के समय जो दोष या योग बनते हैं। उन्हें हम उस जातक की कुंडली का अध्ययन कर पता कर सकते हैं। इन्हीं दोष में एक है 'कालसर्प दोष' यह योग विशिष्ट व्यक्तियों को होता है।

    इतिहास के पन्नों के पलटें तो 'कालसर्प' दोष मुगल बादशाह अकबर, भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मोरारजी देसाई, चंद्रशेखर सिंह को था। कालसर्प दोष विशिष्ट व्यक्तियों को ही होता है। इसलिए कालसर्प दोष को लेकर चिंता ग्रस्त होने की जरूरत नहीं। लेकिन किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह पर कालसर्प दोष की शांति करवा लेनी चाहिए।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    क्यों होता है कालसर्प दोष

    कालसर्प एक योग है जो जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या शाप के कारण उसकी जन्मकुंडली में होता है। ऐसे जातक व्यक्ति आर्थिक व शारीरिक रूप से परेशान तो होता ही है, मुख्य रूप से उसे संतान संबंधी कष्ट होता है।

    क्या है मोहिनी से संबंध

    मोहिनी भगवान विष्णु की अवतार थीं। जब समुद्र मंथन में अमृत निकला तो वह देवताओं को अमृत पिला रही थीं। और दानवों को जल। यह साक्षात् जब स्वरभानु दैत्य ने देख लिया तो वह चुपके से देवताओं का रूप रख उनकी मंडली में बैठ गया। लेकिन चंद्रमा और सूर्य ने दैत्य को पहचान लिया। और मोहिनी को बताया कि यह दैत्य है।

    मोहिनी ने तुरंत भगवान विष्णु का रूप में प्रकट हुईं और सुदर्शन चक्र से स्वरभानु का गला काट दिया। उसका शरीर दो गले और बिना गले के शरीर में बंट गया। तब श्रीहरि ने स्वरभानु से कहा, चूंकि तुम्हारे अंदर अमृत है तो तुम अमर रहोगे लेकिन तुम्हारा सिर राहु और धड़ केतु के नाम से जाना जाएगा।

    स्वरभानु अब राहु केतु में बंट गया। लेकिन उसकी यह स्थिति चंद्र देव और सूर्य देव के कारण हुई। इसलिए राहु उनसे हमेशा कुपित रहता है। कहते हैं कि राहु केतु सूर्य और चन्द्रमा को निगल लेता है जिससे सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण होता है।

    राहु केतु में एक एक दूसरे से सातवें घर में स्थित रहते हैं और दोनों के बीच 180 डिग्री की दूरी बनी रहती है। ये सदैव वक्री रहता है। अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र दोनों आमने सामने होते हैं उस समय राहु अपना काम करता है जिससे सूर्य ग्रहण होता है।

    उसी प्रकार पूर्णिमा के दिन केतु अपना काम करता है और चन्द्रग्रहण लगता है। विष्णु को सूर्य भी कहा गया है जो दीर्घवृत्त के समान हैं। राहु केतु दो सम्पात बिन्दु हैं जो इस दीर्घवृत्त को दो भागों में बांटते हैं। इन दो बिन्दुओं के बीच ग्रहों की उपस्थिति होने से 'कालसर्प योग(दोष)' बनता है जो व्यक्ति से संघर्ष कराता है।