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    Kabir Jayanti 2022: कबीरदास जयंती पर पढ़ें उनके अनमोल दोहे, जो कर देंगे आपके हर कष्ट दूर

    By Shivani SinghEdited By:
    Updated: Tue, 14 Jun 2022 09:11 AM (IST)

    Kabirdas Jayanti 2022 महान सुधारक कवि और अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में व्याप्त भेदभाव के खिलाफ जन-जागरण पैदा करने वाले महान संत कबीरदास जी की जयंती पर इन दोहे के माध्यम से व्यक्ति जीने की नई राह पा सकता है।

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    Kabirdas Jayanti 2022 कबीर दास जयंती पर पढ़ें ये दोहे

    नई दिल्ली, Kabirdas Jayanti 2022: ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि के मध्यकाल में महान कवि और संत कबीर दास का जन्म हुआ था। इसी कारण आज के दिन को जयंती के रूप में मनाया जाता है। सत्य एवं अहिंसा का संदेश देने वाले 15वीं सदी के महान कवि संत कबीर दास जी ने अपने दोहों से हर किसी को अपना बना लिया। भारतीय संत परम्परा के अद्वितीय हस्ताक्षर कबीरदास जी ने अपने दोहों व रचनाओं से सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जनजागरण कर समाज को नई दिशा देने का काम किया। कबीर दा की जयंती के अवसर पर आप उनके कुछ दोहों को पढ़कर जीवन की सही राह में चल सकते हैं।

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    1- 'सांच बराबरि तप नहीं, झूठ बराबर पाप।

    जाके हिरदै साँच है, ताकै हृदय आप॥”

    समाज को समानता, सेवा, आपसी सौहार्द और प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले संत कबीर दास जी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन।

    2- काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।

    पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥

    कबीर दास जी कहते हैं कि हमारे पास समय बहुत कम है, जो काम कल करना है वो आज करो, और जो आज करना है वो अभी करो, क्यों कि पता नहीं कब या हो जाए।

    3- दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।

    जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय॥

    कबीर जी इस दोहे में कहते हैं कि दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है लेकिन सुख में हर कोई ईश्वर को भूल जाता है। इसलिए अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुख कभी पास में फटकेगा ही नहीं।

    4- मैं जानूं मन मरि गया, मरि के हुआ भूत |

    मूये पीछे उठि लगा, ऐसा मेरा पूत ||

    इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि भूलवश मैंने जाना था कि मेरा मन भर गया, किंतु वह तो मरकर प्रेत हुआ। मरने के बाद भी उठकर मेरे पीछे लग पड़ा, ऐसा यह मेरा मन बालक की तरह है।

    5- शब्द विचारी जो चले, गुरुमुख होय निहाल |

    काम क्रोध व्यापै नहीं, कबूँ न ग्रासै काल ||

    इस दोहे का अर्थ है कि गुरुमुख शब्दों का विचार करके आचरण करता है वह हमेशा के लिए कृतार्थ हो जाता है। उसको किसी भी तरह के काम क्रोध नहीं सताते और वह कभी मन कल्पनाओं के मुख में नहीं पड़ता।

    6- तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई

    सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।

    कबीर दास की इस दोहे के माध्यम से कहते हैं कि शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना बिरले ही व्यक्तियों का काम है। यदि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियां सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

    Pic Credit- Twitter/INCIndia

    डिसक्लेमर

    'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'