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    Utpanna Ekadashi 2024: उत्पन्ना एकादशी का इस नियम से करें पारण, न करें ये गलतियां

    Updated: Fri, 15 Nov 2024 05:50 PM (IST)

    सभी एकादशी का अपना एक खास महत्व है। मार्गशीर्ष माह में पड़ने वाली एकादशी को उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi 2024 Date) के नाम से जाना जाता है। इस दिन भक्ति भाव से जगत के पालनहार भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा का विधान है। इस साल यह एकादशी 26 नवंबर को मनाई जाएगी तो चलिए इसका पारण नियम जानते हैं।

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    Utpanna Ekadashi 2024: उत्पन्ना एकादशी पारण नियम।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी तिथि का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। यह तिथि भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। सभी एकादशी तिथि का अपना एक विशेष महत्व है, जो शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के दौरान मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सच्चे भाव के साथ पूजा-अर्चना करने से सुख और शांति की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन कल्याण की ओर बढ़ता है। यदि आप श्री हरि की कृपा की इच्छा रखते हैं, तो आपको इस दिन (Utpanna Ekadashi 2024 Date) उनकी खास पूजा करनी चाहिए।

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    माना जाता है कि यह व्रत तभी पूर्ण माना जाता है, जब इसका पारण सही तरीके से किया जाए, तो आइए इसकी विधि जानते हैं, जो इस प्रकार है।

    उत्पन्ना एकादशी पारण समय (Utpanna Ekadashi Paran Time)

    हिंदू पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 26 नवंबर को देर रात 01 बजकर 01 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, इसका समापन 27 नवंबर को देर रात 03 बजकर 47 मिनट पर होगा। पंचांग के आधार पर एकादशी 26 नवंबर को मनाई जाएगी। जो लोग इस पावन व्रत (Utpanna Ekadashi 2024) का पालन करते हैं, उन्हें पारण समय का विशेष ध्यान देना चाहिए।

    उत्पन्ना एकादशी का पारण 27 नवंबर को दोपहर 01 बजकर 12 मिनट से लेकर 03 बजकर 18 मिनट के बीच किया जाएगा।

    उत्पन्ना एकादशी पारण नियम (Utpanna Ekadashi Paran Niyam)

    जो लोग एकादशी व्रत का पालन करते हैं, उन्हें इस व्रत का पारण समय और विधिपूर्वक करना चाहिए। सबसे पहले सुबह उठकर पवित्र स्नान करें। फिर पूजा कक्ष को साफ करें। भगवान कृष्ण की विधिपूर्वक पूजा करें और उनके वैदिक मंत्रों का जाप करें। उन्हें फल, फूल, मिष्ठान आदि अर्पित करें। आरती से पूजा को पूर्ण करें। पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमायाचना करें। क्षमता अनुसार, दान करें। फिर चढ़ाए गए प्रसाद जैसे- माखन, मिश्री, पंजीरी, खीर आदि को ग्रहण करें।

    इसके बाद सात्विक भोजन करें, जिसमें लहसून, प्याज न डला हो। श्री हरि का आभार प्रकट करें। साथ ही तामसिक चीजों से परहेज करें। इससे आपका व्रत सफल होगा।

    उत्पन्ना एकादशी मंत्र

    • ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय
    • शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये
    • ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्। अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्

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    अस्वीकरण: ''इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है''।

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