Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Kaal Bhairav Jayanti 2025: भय से मुक्ति दिलाते हैं काल भैरव, जानिए काशी से कैसे जुड़ा है नाता

    By digital deskEdited By: Suman Saini
    Updated: Tue, 11 Nov 2025 04:00 PM (IST)

    पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर काल भैरव जयंती मनाई जाती है। ऐसे में इस बार काल भैरव जयंती 12 नवंबर को मनाई जाएगी है। मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन पर महादेव ने काल भैरव के रूप में अवतार लिया था। आज हम आपको इस लेख के जरिए बताने जा रहे हैं काल भैरव देव का काशी से नाता किस प्रकार जुड़ा है।

    Hero Image

    Kaal Bhairav Jayanti 2025 (AI Generated Image)

    दिव्या गौतम, एस्ट्रोपत्री। भगवान कालभैरव की जयंती हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रद्धा और भक्ति से मनाई जाती है। वर्ष 2025 में यह पावन दिवस 12 नवंबर, बुधवार को मनाया जाएगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी के अहंकार से सृष्टि में असंतुलन उत्पन्न हुआ, तब भगवान शिव ने भैरव रूप धारण कर उस अहंकार का नाश किया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तभी से वे ‘कालभैरव’ (Kaal Bhairav Jayanti 2025) कहलाए और काशी को अपना निवास बनाया। शिवपुराण के काशी खंड में उल्लेख है कि भगवान शिव ने काशी की रक्षा का दायित्व कालभैरव देव को सौंपा, जो आज भी काशी के कोतवाल (रक्षक) माने जाते हैं।

    काशी के कोतवाल

    काशी के प्रति श्रद्धालुओं की आस्था यह कहती है कि बिना भगवान कालभैरव की अनुमति के कोई भी व्यक्ति इस पवित्र नगरी में प्रवेश नहीं कर सकता। भगवान कालभैरव यहां धर्म की मर्यादा की रक्षा करते हैं और अधर्म या अन्याय का दंड स्वयं देते हैं। यही कारण है कि वाराणसी आने वाले हर श्रद्धालु अपनी यात्रा की शुरुआत कालभैरव मंदिर के दर्शन से करता है। यह परंपरा केवल धार्मिक नियम नहीं बल्कि आध्यात्मिक शुद्धि का प्रतीक मानी जाती है, जो यह दर्शाती है कि मोक्ष की नगरी में प्रवेश से पूर्व भय, पाप और अहंकार का त्याग आवश्यक है।

    kaal bhairav kashi i

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    काशी में कालभैरव पूजा की परंपरा

    काशी में भगवान काल भैरव की पूजा का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यहां यह परंपरा है कि बिना भगवान काल भैरव के दर्शन किए कोई भी तीर्थयात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती। श्रद्धालु जब काशी पहुंचते हैं, तो सबसे पहले काल भैरव मंदिर जाकर नगर के कोतवाल को प्रणाम करते हैं, उसके बाद ही विश्वनाथ, अन्नपूर्णा और अन्य देवी-देवताओं के दर्शन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि कालभैरव देव की अनुमति प्राप्त करने के बाद ही भक्त को काशी के अन्य तीर्थों का पुण्य फल पूर्ण रूप से प्राप्त होता है। यही कारण है कि यह पूजा काशी यात्रा की प्रथम सीढ़ी मानी जाती है।

    kaal-bhairav- ग

    (AI Generated Image)

    काल भैरव मंदिर का महत्व

    काशी का कालभैरव मंदिर शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है। यह मंदिर भगवान शिव के आठ प्रमुख भैरव रूपों में से सर्वश्रेष्ठ माने जाने वाले कालभैरव को समर्पित है। कहा जाता है कि यहां की मूर्ति स्वयंभू है, जो काल और मृत्यु पर नियंत्रण रखने वाले भैरव देव की प्रत्यक्ष उपस्थिति का प्रतीक है।

    भक्तों का विश्वास है कि सच्चे मन से की गई भगवान कालभैरव उपासना से व्यक्ति के जीवन से भय, पाप और नकारात्मकता का नाश होता है। यह मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि वह स्थान है जहां भक्ति, निर्भयता और मुक्ति का संगम होता है।

    लेखक: दिव्या गौतम, Astropatri.com अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क करें।