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    Jyeshtha Purnima 2024: ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन अवश्य करें चंद्र देव की पूजा, मिलेगा सुख और शांति का आशीर्वाद

    Updated: Fri, 21 Jun 2024 01:59 PM (IST)

    ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन चंद्र देव अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। यही वजह है कि इस शुभ अवसर पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है जो लाग इस तिथि पर स्नान-दान करते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। इस बार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा 22 जून 2024 को मनाई जाएगी।

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    Jyeshtha Purnima 2024: ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा पर करें चंद्र देव की पूजा -

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन बेहद कल्याणकारी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्र देव अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। यही कारण है कि इस शुभ अवसर पूजा-पाठ का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का विधान है, जो लाग इस तिथि पर स्नान-दान करते हैं उनकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।

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    इस बार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा (Jyeshtha Purnima 2024) 22 जून, 2024 को मनाई जाएगी। इसके अलावा इस मौके पर चंद्र देव की पूजा अवश्य करें। उन्हें जल अर्पित करें। इसके बाद उनके वैदिक मंत्रों का जाप करें और चालीसा का पाठ करें। अंत में आरती से पूजा को समाप्त करें।

    ।।चंद्र चालीसा।।

    शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।

    उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम।।

    सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकर।

    चन्द्रपुरी के चन्द्र को, मन मंदिर में धार।।

    चौपाई

    जय-जय स्वामी श्री जिन चन्दा,

    तुमको निरख भये आनन्दा।

    तुम ही प्रभु देवन के देवा,

    करूँ तुम्हारे पद की सेवा।।

    वेष दिगम्बर कहलाता है,

    सब जग के मन भाता है।

    नासा पर है द्रष्टि तुम्हारी,

    मोहनि मूरति कितनी प्यारी।।

    तीन लोक की बातें जानो,

    तीन काल क्षण में पहचानो।

    नाम तुम्हारा कितना प्यारा ,

    भूत प्रेत सब करें निवारा।।

    तुम जग में सर्वज्ञ कहाओ,

    अष्टम तीर्थंकर कहलाओ।।

    महासेन जो पिता तुम्हारे,

    लक्ष्मणा के दिल के प्यारे।।

    तज वैजंत विमान सिधाये ,

    लक्ष्मणा के उर में आये।

    पोष वदी एकादश नामी ,

    जन्म लिया चन्दा प्रभु स्वामी।।

    मुनि समन्तभद्र थे स्वामी,

    उन्हें भस्म व्याधि बीमारी।

    वैष्णव धर्म जभी अपनाया,

    अपने को पंडित कहाया।।

    कहा राव से बात बताऊं ,

    महादेव को भोग खिलाऊं।

    प्रतिदिन उत्तम भोजन आवे ,

    उनको मुनि छिपाकर खावे।।

    इसी तरह निज रोग भगाया ,

    बन गई कंचन जैसी काया।

    इक लड़के ने पता चलाया ,

    फौरन राजा को बतलाया।।

    तब राजा फरमाया मुनि जी को ,

    नमस्कार करो शिवपिंडी को।

    राजा से तब मुनि जी बोले,

    नमस्कार पिंडी नहिं झेले।।

    राजा ने जंजीर मंगाई ,

    उस शिवपिंडी में बंधवाई।

    मुनि ने स्वयंभू पाठ बनाया ,

    पिंडी फटी अचम्भा छाया।।

    चन्द्रप्रभ की मूर्ति दिखाई,

    सब ने जय-जयकार मनाई।

    नगर फिरोजाबाद कहाये ,

    पास नगर चन्दवार बताये।।

    चंद्रसेन राजा कहलाया ,

    उस पर दुश्मन चढ़कर आया।

    राव तुम्हारी स्तुति गई ,

    सब फौजो को मार भगाई।।

    दुश्मन को मालूम हो जावे ,

    नगर घेरने फिर आ जावे।

    प्रतिमा जमना में पधराई ,

    नगर छोड़कर परजा धाई।।

    बहुत समय ही बीता है कि ,

    एक यती को सपना दीखा।

    बड़े जतन से प्रतिमा पाई ,

    मन्दिर में लाकर पधराई।।

    वैष्णवों ने चाल चलाई ,

    प्रतिमा लक्ष्मण की बतलाई।

    अब तो जैनी जन घबरावें ,

    चन्द्र प्रभु की मूर्ति बतावें।।

    चिन्ह चन्द्रमा का बतलाया ,

    तब स्वामी तुमको था पाया।

    सोनागिरि में सौ मन्दिर हैं ,

    इक बढ़कर इक सुन्दर हैं।।

    समवशरण था यहां पर आया ,

    चन्द्र प्रभु उपदेश सुनाया।

    चन्द्र प्रभु का मंदिर भारी ,

    जिसको पूजे सब नर - नारी।।

    सात हाथ की मूर्ति बताई ,

    लाल रंग प्रतिमा बतलाई।

    मंदिर और बहुत बतलाये ,

    शोभा वरणत पार न पाये।।

    पार करो मेरी यह नैया ,

    तुम बिन कोई नहीं खिवैया।

    प्रभु मैं तुमसे कुछ नहीं चाहूं ,

    भव - भव में दर्शन पाऊँ।।

    मैं हूं स्वामी दास तिहारो ,

    करो नाथ अब तो निस्तारा।

    स्वामी आप दया दिखाओ ,

    चन्द्र दास को चन्द्र बनाओ।।

    सोरठ

    नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।

    खेय सुगन्ध अपार , सोनागिर में आय के।।

    होय कुबेर सामान, जन्म दरिद्री होय जो।

    जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।।

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