Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Jivitputrika vrat 2023: संतान की रक्षा के लिए करें जीवित्पुत्रिका व्रत कथा का पाठ, जीवन में होगा मंगल ही मंगल

    By Jagran NewsEdited By: Suman Saini
    Updated: Tue, 03 Oct 2023 11:43 AM (IST)

    Jivitputrika vrat 2023 katha सनातन धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व है। इस व्रत को माताएं अपनी संतान की सुरक्षा के लिए रखती हैं। जितिया व्रत की कई कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक कथाओं में जीमूतवाहन की पूजा का विधान है। इस व्रत पर कथा का पाठ करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। तो चलिए पढ़ते हैं जितिया व्रत कथा -

    Hero Image
    Jivitputrika vrat 2023 पढ़िए जीवित्पुत्रिका व्रत कथा।

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Jivitputrika vrat 2023: मान्यताओं के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखा जाता है। इस साल जीवित्पुत्रिका का व्रत 06 अक्टूबर को रखा जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि यदि आप इस उपवास को सच्चे दिल से रखते हैं तो आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं। 

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    जितिया व्रत कथा 

    गंधर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन जो अपने परोपकार और पराक्रम के लिए जाने जाते थे। एक बार जीमूतवाहन के पिता उन्हें राजसिंहासन पर बिठाकर वन में तपस्या के लिए चले गए। लेकिन उनका मन राज-पाट में नहीं लगा। इसी के चलते वे अपने भाइयों को राज्य की जिम्मेदारी सौंप कर अपने पिता के पास उनकी सेवा के लिए चले गए, जहां उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या से हुआ।

    एक दिन भ्रमण करते हुए उनकी भेंट एक वृद्ध स्त्री से हुई, जो नागवंश से थी। वो काफी ज्यादा परेशान और डरी हुई थी। उसकी ऐसी हालत देखकर जीमूतवाहन ने उसका हाल पूछा। उस वृद्धा ने बताया कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को यह वचन दिया है कि वे प्रत्येक दिन एक नाग को उनके आहार के रूप में उन्हें देंगे। उस स्त्री ने रोते हुए बताया कि उसका एक बेटा है, जिसका नाम शंखचूड़ है। आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास आहार के रूप में जाना है।

    जैसे जीमूतवाहन ने वृद्धा की हालत देखी उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वो उसके पुत्र के प्राणों की रक्षा करेंगे। वचन के अनुसार, जीमूतवाहन पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हुए। और गरुड़ उन्हें अपने पंजों में दबोच कर साथ ले गए। उस दौरान उन्होंने जीमूतवाहन के कराहने की आवाज सुनी और वे एक पहाड़ पर रुक गए, जहां जीमूतवाहन ने उन्हें पूरी घटना बताई।

    पक्षीराज गरुड़ जीमूतवाहन के साहस और परोपकार भाव को देखकर प्रसन्न हो गए, जिस वजह से उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया। साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे। जानकारी के लिए बता दें कि तभी से संतान की सुरक्षा और उन्नति के लिए जीमूतवाहन की पूजा का विधान है, जिसे लोग आज जितिया व्रत के नाम से भी जानते हैं।

    Writer - Vaishnavi Dwivedi 

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'