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Jitiya Vrat 2020: आज है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें इसका इतिहास और महत्व

Jitiya Vrat 2020 आज जीवित्पुत्रिका व्रत है। यह व्रत हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इसे जितिया या जिउतिया भी कहा जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 08:00 AM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 11:08 AM (IST)
Jitiya Vrat 2020: आज है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें इसका इतिहास और महत्व
Jitiya Vrat 2020: आज है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें इसका इतिहास और महत्व

Jitiya Vrat 2020: आज जीवित्पुत्रिका व्रत है। यह व्रत हर वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इसे जितिया या जिउतिया भी कहा जाता है। इस पुत्रवती महिलाएं अपनी पुत्रों के लिए निर्जला उपवास करती हैं। इस दिन महिलाएं अपने पुत्रों की दीर्घायु की कामना करती हैं। साथ ही उनके सुखमय जीवन का भी आशीर्वाद मांगती हैं। यह व्रत उत्तर पूर्वी राज्यों में ज्यादा लोकप्रिय है। इस व्रत का महत्व और इतिहास क्या है इसकी जानकारी हम आपको यहां दे रहे हैं।

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जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व:

इस दिन शादीशुदा महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत करती हैं। संतान के लिए यह व्रत अत्यंत महत्व रखता है। इस व्रत को करने से संतान की खुशहाली और समृद्धि बनी रहीत है। के लिए भी किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान दीर्घायु होता है। यह व्रत वंश वृद्धि के लिए भी काफी महत्व रखता है। इस व्रत को करने से संतान को चारों ओर से यश मिलता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा:

इसकी कथा महाभारत से जुड़ी हुई है। जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था तब अश्वत्थामा अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उतावला था। वो गुस्से से आग-बबूला हो रहा था। इस बदले की आग में एक दिन छिपकर पांडवों के स्थान पर गया। जब वो वहां पहुंचा तो उसने पांडवों के पांच पुत्रों को मार डाला। उसे लगा कि वो पांच पांडव है जिन्हें वो मार रहा है। जब पांडवों को इस बात का पता चला तो उन्हें अश्वत्थामा की इस हरकत पर बहुत गुस्सा आया। इसके चलते अर्जुन ने अश्वत्थामा की मणि छीन ली। यह देख अश्वत्थामा को पांडवों पर और क्रोध आ गया। तब उसने योजना बनाई कि वो उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को जान से मार देगा। इसके लिए अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल किया।

यह सब श्री कृष्ण जानते थे। उन्हें पता था कि ब्रह्मास्त्र को रोक पाना नामुमकिन है। यह जानते हुए भी कि ब्रह्मास्त्र को रोकना नामुमकि है उन्होंने पांडवों के पुत्र को भी बचाना था। अत: श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को दे दिया। इससे वह बालक पुनर्जीवित हो गया। बड़ा होकर यह बच्चा राजा परीक्षित बना। यही कारण था कि इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा क्योंकि उत्तरा के बच्चे को श्री कृष्ण का पुनर्जीवित किया था। बस तभी से संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य की कामना के लिए यह व्रत माताएं यह व्रत करती हैं।


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