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    Jaya Ekadashi 2025: जया एकादशी पर करें इस कथा का पाठ, अक्षय फलों की होगी प्राप्ति

    Updated: Sat, 08 Feb 2025 08:37 AM (IST)

    जया एकादशी का दिन हिदुओं में बहुत ही महत्व रखता है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भक्त इस दिन व्रत रखते हैं और पूजा-पाठ करते हैं। वहीं इस दिन पूजा के दौरान इसकी व्रत कथा का पाठ परम फलदायी माना गया है। इस साल यह एकादशी (Jaya Ekadashi 2025) 8 फरवरी यानी आज मनाई जा रही है।

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    Jaya Ekadashi 2025: जया एकादशी व्रत कथा।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। जया एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस शुभ दिन पर भगवान लोग विष्णु की पूजा करते हैं। साथ ही कठिन उपवास रखते हैं। एक साल में कुल चौबीस एकादशी मनाई जाती हैं। वहीं, एक महीने में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में दो एकादशी आती हैं। इस साल जया एकादशी का व्रत माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 8 फरवरी, 2025 यानी आज रखा जा रहा है।

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    अगर आप इस व्रत का पालन कर रहे हैं, तो इसकी कथा का पाठ जरूर करें, क्योंकि इसके बिना एकादशी व्रत अधूरा माना जाता है, तो आइए यहां पढ़ते हैं।

    जया एकादशी व्रत कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha Ka Path)

    एक बार इंद्र की सभा में भव्य उत्सव चल रहा था। सभी में संत और देवी-देवता उसमें शामिल हुए। सभा में गायन और नृत्य कार्यक्रम चल रहा था। गंधर्व कन्याएं और गंधर्व नृत्य और गायन बेहद उत्साह के साथ कर रहे थे। इस दौरान नृत्य कर रही पुष्यवती की दृष्टि गंधर्व माल्यवान पर पड़ गई। माल्यवान के यौवन पर पुष्यवती पर मोहित हो गई। इससे वह सुध-बुध खो बैठी और अपनी लय-ताल से भटक गई।

    वहीं, माल्यवान भी सही तरीके से गायन नहीं कर रहा था। ऐसा देख सभा में उपस्थित सभी लोग क्रोधित हो उठे। यह दृष्य देख स्वर्ग नरेश इंद्र भी बहुत ज्यादा क्रोधित हुए और उन्होंने दोनों को स्वर्ग से बाहर कर दिया। साथ ही उनको यह श्राप दिया कि तुम दोनों को प्रेत योनि प्राप्त होगी। श्राप के असर से माल्यवान और पुष्यवती प्रेत योनि में चले गए और वहां जाकर उनको दुख का सामना करना पड़ा। प्रेत योनि बहुत कष्टदायक थी। एक बार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी को माल्यवान और पुष्यवती ने अन्न का सेवन नहीं किया। दिन में एक बार फलाहार किया।

    इस दौरान दोनों ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु का सुमिरन किया। दोनों की भक्ति भाव को देखकर भगवान विष्णु ने पुष्यवती और माल्यवान को प्रेत योनि से मुक्त कर दिया। भगवान श्रीहरि के आशीर्वाद से दोनों को सुंदर शरीर प्राप्त हुआ और वह फिर से स्वर्गलोक चले गए। जब वहां पहुंचकर इंद्र को प्रणाम किया, तो वह चौंक गए। इसके बाद उन्होंने पिशाच योनि से मुक्ति का उपाय पूछा।

    इसके बाद माल्यवान ने बताया कि एकादशी व्रत (Jaya Ekadashi Puja) के प्रभाव और भगवान विष्णु की कृपा से दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति मिली है। इसी प्रकार जो व्यक्ति जया एकादशी का व्रत रखता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।