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    Japa Mala: जाप माला में 108 मोती ही क्यों, जानिए कैसे व्यक्ति की सांसों से जुड़ा है इस संख्या का संबंध

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Fri, 16 Jun 2023 10:33 AM (IST)

    आपने कई लोगों को माला से जाप करते देखा होगा। साथ भी यह भी देखा होगा कि इस जाप माला में 108 मोती ही होते हैं। हिंदू धर्म में माला से जाप करने के भी कुछ नियम बताए गए हैं जिनके पालन से पूर्ण फल प्राप्त होता है।

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    Japa Mala जाप माला में 108 मोती ही क्यों होते हैं

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। शास्त्रों में 108 संख्या को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि माला का उपयोग करने से आपका जप वास्तव में पूर्ण होता है। लेकिन संख्याहीन किए गए जापों का पूर्ण फल नहीं मिलता। इसलिए जाप के लिए एक संख्या तय की गई है। इसके पीछे कई धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक मान्यताएं मौजूद हैं।

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    सूर्य की कलाओं से है गहरा संबंध

    108 दाने और सूर्य की कलाओं का गहरा संबंध है। माला का एक-एक दाना सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक होता है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है और वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता है। छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है। इसी के आधार पर इस संख्या के पीछे के 3 शून्य हटाकर दानों की संख्या 108 निर्धारित की गई है।

    किस प्रकार है सांसों से संबंध

    मनुष्य की सांसों से माला के दानों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यतः 24 घंटे में एक व्यक्ति करीब 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति 10800 बार सांस लेता है। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए, लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। इसलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 दाने होते हैं।

    क्या है जाप का सही तरीका

    मंत्र जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा दाना होता है जो कि सुमेरु कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या शुरू होती है और यहीं पर खत्म भी होती है। जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू दाने तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को कभी भी लांघना नहीं चाहिए। जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'