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    Janmashtami 2025: भक्ति से सराबोर कर देंगे ब्रज के ये लोकगीत, जरूर बनाएं जन्माष्टमी पूजा का हिस्सा

    Updated: Sat, 16 Aug 2025 04:08 PM (IST)

    ब्रज मंडल में जन्माष्टमी की अलग ही धूम देखने को मिलती है और हो भी क्यों न। कान्हा जी का बचपन ब्रज मंडल में ही बीता है। इस खास मौके पर हम आपको ब्रज के कुछ लोकगीत बताने जा रहे हैं जो आपको भक्ति से सराबोर कर देंगे। यह गीत न केवल भगवान कृष्ण की भक्ति से भरे हुए हैं बल्कि इसमें कृष्ण-लीला का भी वर्णन मिलता है।

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    Janmashtami 2025: जन्माष्टमी पर जरूर गाएं ब्रज के ये लोकगीत।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, कान्हा जी का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर हुआ था। ऐसे में यह पर्व आज यानी 16 अगस्त के दिन देशभर में बड़े ही धूम-धाम और उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। चलिए जन्माष्टमी (anmashtami Song 2025) के इस खास मौके पर पढ़ते हैं कान्हा जी को समर्पित ब्रज भाषा के कुछ लोकगीत।

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    मेरौ बारौ सो कन्हैंया कालीदह पै खेलन आयो री

    मेरौ बारौ सो कन्हैंया कालीदह पै खेलन आयो री

    ग्वाल-बाल सब सखा संग में गेंद को खेल रचायौरी

    काहे की जाने गेंद बनाई काहे को डण्डा लायौरी

    रेशम की जानें गेंद बनाई, चन्दन को डण्डा लायौरी

    मारौ टोल गेंद गई दह में गेंद के संग ही धायौरी

    नागिन जब ऐसे उठि बोली, क्यों तू दह में आयौरी

    कैं तू लाला गैल भूलि गयो, कै काऊ ने बहकायौरी

    कैसे लाला तू यहाँ आयो, कैं काऊ ने भिजवायोरी

    ना नागिन मैं गैल भूल गयो, ना काऊ ने बहकायौरी

    नागिन नाग जगाय दे अपनों याहीकी खातिर आयौरी

    नाँय जगाये तो फिर कहदे ठोकर मारि जगायौरी

    हुआ युद्ध दोनों में भारी, अन्त में नाग हरायौ री

    नाग नाथि रेती में डारौ फन-फन पे बैंन बजायौरी

    रमनदीप कूँ नाग भेज दियौ फनपै चिन्ह लगायौरी

    ‘घासीराम’ ने रसिया कथिके, भर दंगल में गायौरी

    ब्रज मंडल, जिसे ब्रजभूमि भी कहा जाता है, वह स्थान है, जहां भगवान कृष्ण ने अपनी लीलाएं रची हैं। इसी कारण से इसे कृष्ण जी की लीलास्थली भी कहा जाता है। यहां 12 महीने कृष्ण नाम की धूम रहती है, लेकिन जन्माष्टमी व उसके आसपास यहां का नजारा अद्भुत होता है।

    (Picture Credit: Freepik) (AI Image)

    तेरौ जनम सुफल है जाय लगायलै रज ब्रजधाम की

    तेरौ जनम सुफल है जाय लगायलै रज ब्रजधाम की

    काट दें पाप तेरे ब्रजराज

    लगाय लै परिकम्मा गिर्राज

    बनें सब तेरे बिगड़े काज

    दोहा- काम तेरे बिगड़े सभी, दें बनाय वृजचन्द

    करते भव से पार हैं, वे माधवचन्द मुकुन्द

    हृदय के पट खोल और, करि झाँकी श्याम की

    मानसी गंगा कर स्नान

    प्रेम से चरनामृत कर पान

    लगा मंसा देवी से ध्यान

    दोहा- दर्शन कर महादेव के, पूरन करें मुराद

    चकलेश्वर महादेव जी, हरें तेरी सब व्याधि

    हरें तेरी सब व्याधि, लगा लौ तू शिव नाम की

    दान घाटी पै दूध चढ़ाय

    प्रेम सै दै परसाद लगाय

    बाँट विप्रन को भोग उठाय

    दोहा- परिकम्मा कर नेम से, सात बार तू यार

    दण्डौती कर प्रेम से, है जाय भव से पार

    हे जाय भव से पार, लगा रट तू राधेश्याम की

    लगाय लै गोता चलती टैम

    धार कै हर पूनों कौ नैम

    करियो दर्शन उठिते खैम

    दोहा- कीने जितने पाप हैं, धुलें सभी अज्ञान

    काम-क्रोध और मोह को तजि मुरख नादान

    कहते ‘गेंदालाल’ भजन कर पुतली चाम की

    माना जाता है कि ब्रज के कण-कण में भगवान श्रीकृष्ण का वास है। यहां जन्माष्टमी की एक अगल ही धूम देखने को मिलती है। इस दौरान पूरा माहौल कृष्ण भक्ति से भर जाता है।

    कियौ महारास प्रभु बन में

    कियौ महारास प्रभु बन में, वृन्दावन गुल्म लतन में

    बन की शोभा अति प्यारी, जहाँ फूल रही फुलवारी

    सोलह हजार ब्रजनारी, द्वै द्वै न बीच एक गिरिधारी

    झ़ड़-ताथे-ताथेई नचत घूँघरू बजत झूम झन झनन

    सारंगी सनन करत तमूना तनन

    सप्त सुरन सों बजत बाँसुरी, शोर भयौ त्रिभुवन में

    बंशी को घोर भयौ भारी, मोहे सुन मुनि तप-धारी

    जड़ पशु पक्षी नर-नारी, शिव-समाधि खुल गई तारी

    झड़ सुन जमुना जल भयौ अचल, सिथिल भये सकल

    जीव बनचारी, मनमोहन बीन बजाय मोहिनी डारी

    जहाँ के तहाँ थिर रहे परी धुन बंशी की श्रवनन में

    जब उठ धाये त्रिपुरारी, जमुना कहै रोक अगारी

    गुरु दीक्षा लेओ हमारी, जब करौ रास की त्यारी

    झड़ नहीं पुरुषकौ अधिकार, सजाशृंगार नारि बनजाओ

    तब महारास के दरशन परसन पाओ

    जमुना के बचन सुने, शिव जान गये सब मन में

    जब खाय भंग कौ गोला, जमुना में धोय लियौ चोला

    गोपी बन गये बंभोला, यों नवल नार अनबोला

    झड़ जहाँ है रह्यौ रास विलास, पहुंच गये पास, भये अनुरागे

    शिव शंकर सखियन संग नाचने लागे

    भूल गये कैलाश वास, हर है रहे मगन लगन में

    गोपिन संग नृत्य कर्यो है, हिरदे आनन्द भर्यो है

    जब शिव पहिचान पर्यौ है, गोपेश्वर नाम धरयौ है

    झड़-सब गोपी भई प्रसन्न, धन्य प्रभु धन्य मधुर बीनाकी

    कर महारास निशि कीनी छै महीना की

    ‘घासीराम’ कृपा सों छीतर बस रह्यौ गोवरधन में

    साभार- कविताकोश

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