बहुत अधिक महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात नहीं है
लक्ष्य के आते ही भविष्य आता है, भविष्य के साथ समय आता है। बादल आकाश में मंडराता है, उसके पास न मन है और न भविष्य है।हर क्षण पूर्ण शाश्वत है।
बादल की तरह न हमारा कोई मार्ग होना चाहिए और न कोई महत्वाकांक्षा। इससे रहित सहज मन ही ध्यान लगा पाता है। ओशो का दृष्टिकोण...
बादल के पास अपना कोई मार्ग नहीं होता। वह हवा में उड़ता फिरता है, किसी मस्त-मौला घुमक्कड़ की तरह। कहीं पहुंचने की उसे जल्दी नहीं होती है। कोई मंजिल नहीं, कोई नियति नहीं। वह कभी उदास या कुंठित नहीं होता, क्योंकि वह जहां भी है, वही उसकी मंजिल है। यदि एक बार आपके मन ने कोई लक्ष्य, उद्देश्य, मंजिल निर्धारित कर ली, तो आप उस तक पहुंचने के पागलपन में पड़ जाएंगे। यदि आपने अपने लिए कोई विशेष लक्ष्य तय कर लिया है, तो आपका निराश होना सुनिश्चित है। जितना अधिक लक्ष्य केंद्रित चित्त होगा, उतना ही अधिक मन दुखी होगा, उद्विग्न और निराश होगा। जब आपके सम्मुख कोई लक्ष्य होता है, तो आप एक निश्चित मुकाम की ओर चलने लगते हैं। उद्देश्य के आते ही आप अखंड अस्तित्व के विरोध में हो जाते
हैं। इसके बाद कुंठा की खाई में गिरने की संभावना बनने लगती है। आप इधर-उधर नहीं मुड़ सकते, जबकि अस्तित्व का कोई गंतव्य नहीं है। यह जीवन कहीं जा नहीं रहा। कोई लक्ष्य नहीं, कोई उद्देश्य नहीं। ध्यान रहे कि एक अंश मात्र होकर, विराट के विरुद्ध कभी जीत नहीं हासिल की जा सकती है।
जीवन यदि लक्ष्यहीन हो जाए, तो वह भी बेकार है। जीवन का लक्ष्य निर्धारित होना अच्छी बात है, लेकिन बहुत अधिक महत्वाकांक्षी होना अच्छी बात नहीं है। बादल तिरता रहता है, जहां भी हवाएं ले जाएं। कोई विरोध नहीं, कोई संघर्ष नहीं। वह कोई योद्धा नहीं है। बादल कोई विजेता नहीं है, फिर भी पूरी गरिमा से मंडराता फिरता है। कोई उसे हरा नहीं सकता, क्योंकि उसके मन में जीतने की आकांक्षा नहीं है। बादल को कहीं भी नहीं जाना है। बस
स्वच्छंद विचरण करना है। इसलिए वह सर्वत्र घूमता है। सारे आयाम उसके हैं। समस्त दिशाएं उसकी हैं। उसे कुछ भी अस्वीकृत नहीं है। हर चीज जहां है, जैसी है, उसे समग्र भाव से स्वीकृत है। बादलों को कहीं भी नहीं पहुंचना है इसलिए उनके रास्ते का अर्थ हुआ मार्गरहित मार्ग । निर्धारित लक्ष्य के बगैर मन के बगैर बादल में गति तो है, साथ ही अ-मन की स्थिति भी है। इसे ठीक से समझ लेना जरूरी है, क्योंकि हमारे लिए उद्देश्य और मन पर्यायवाची हैं। उद्देश्यविहीन जीवन की कल्पना भी मुश्किल है। बगैर उद्देश्य के मन जीवित नहीं रह सकता। इसलिए अपने मार्ग को बादलों जैसा सहज बनाएं। दरअसल, ध्यान भी बादलों की तरह ही होना है। ध्यान का कोई प्रयोजन नहीं होता है। मौलिक रूप से ध्यान अ-मन की अवस्था है। ऐसी स्थिति जहां आप स्वयं बसते हैं।
कहीं आना-जाना नहीं है। ध्यान का लक्ष्य यहीं और अभी मौजूद है : आपका अंतर्तम। जैसे ही गंतव्य दूर होता है, मन उस ओर यात्रा शुरू कर देता है। मंजिल के बारे में सोच-विचार की प्रक्रिया में संलग्न हो जाता है। भविष्य के साथ ही चित्त गति कर सकता है। लक्ष्य के आते ही भविष्य आता है और भविष्य के साथ समय आता है। श्वेत
बादल समयातीत आकाश में मंडराता है, उसके पास न मन है और न भविष्य है। उसका हर क्षण पूर्ण शाश्वत है।
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