राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की मृत्यु का क्या था कारण
पर्वतराज हिमालय की दो पुत्रियां थीं। बड़ी पुत्री गंगाजी को देवों ने मांग लिया और छोटी पुत्री यानी उमा(पार्वती) जी का विवाह भगवान शंकर से हुआ। गंगाजी उन दिनों आकाश में ही निवास किया करती थीं।
पर्वतराज हिमालय की दो पुत्रियां थीं। बड़ी पुत्री गंगाजी को देवों ने मांग लिया और छोटी पुत्री यानी उमा(पार्वती) जी का विवाह भगवान शंकर से हुआ। गंगाजी उन दिनों आकाश में ही निवास किया करती थीं।
इधर, पृथ्वी पर राजा सगर अपनी दोनों रानियों केशिनी और सुमति के साथ संतान प्राप्ति के लिए तप कर रहे थे। इस बीच भृगु-मुनि राजा के तप से प्रसन्न हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति का वरदान दिया। उन्होनें कहा एक रानी से तो एक ही पुत्र ही होगा, और दूसरी रानी से साठ हजार पराक्रमी पुत्रों की प्राप्ति होगी।
लेकिन राजन् जिस रानी के एक पुत्र होगा उसी से आपकी वंश बृद्धि होगी। समय बीतता गया केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम असमंजस रखा गया और सुमति के गर्भ से एक पिण्ड का जन्म हुआ उसमें से साठ हजार पुत्रों का जन्म हुआ। दाइयों को इन हजारों कुमारों को पालने का काम सौंपा गया।
ये सभी राजकुमार जब युवावस्था में पहुंचे तो बड़े ही तेजस्वी हुए। केशिनी का पुत्र असमंजस क्रूर और अत्याचारी था। ऐसे पागल राजकुमार को प्रजा कोसने लगी। लेकिन असमंजस का पुत्र अंशुमान सुशील और विवेकी हुआ।
एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ के घोड़े की जिम्मेदारी अंशुमान के पास थी। इस बीच देवराज इंद्र के मन में खोट आया और वह राक्षस का वेश धारण कर घोड़े को चुराकर ले गए। क्योंकि देवता डरते थे कहीं इंसान, देवों की जगह न ले लें। जब राजा सगर को पता चला तो उन्हें बहुत बुरा लगा। जब राजा सगर को पता चला तो उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों से कहा कि जैसे भी हो खोये हुए घोड़े का पता लगाओ।
सगर के साठ हजार पुत्रों नें पृथ्वी का चक्कर लगा दिया लेकिन अश्व कहीं नहीं मिला। तब उन्होंने पृथ्वी को खोदकर पाताल में घोड़े को तलाशना शुरु किया लेकिन वहां भी घोड़े नहीं मिला। वहीं पाताल में पूर्वोत्तर में कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे उनके सामने ही अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा बंधा हुआ था। जोकि छल से इंद्र ने यहां बांध दिया था।
सगर पुत्रों ने शोर मचाया कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। इस तरह जब कपिल मुनि का आंख खुली तो आंखों से ज्वाला निकली जिसने सभी राज सगर के साठ हजार पुत्रों को जला दिया। इस तरह राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों का अंत हो गया।
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