विसर्जन का अर्थ जल में विलीन होना होता है
हरदा (ब्यूरो)। गणेश प्रतिमाओं को लोगों ने पूरे भक्तिभाव के साथ घरों में विराजित किया और 10 दिन तक उनकी सेवा कर विशेष पूजा अर्चना की॥ लेकिन जब जब रविवार को इनको विसर्जित किया तो यह नदी और कुंड के पानी में गली नही, बल्कि किनारों पर जमा हो गई। दरअसल प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी प्रतिमाएं पानी में संपर्क में आने के बाद गलने की
हरदा। गणेश प्रतिमाओं को लोगों ने पूरे भक्तिभाव के साथ घरों में विराजित किया और 10 दिन तक उनकी सेवा कर विशेष पूजा अर्चना की॥ लेकिन जब जब रविवार को इनको विसर्जित किया तो यह नदी और कुंड के पानी में गली नही, बल्कि किनारों पर जमा हो गई। दरअसल प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी प्रतिमाएं पानी में संपर्क में आने के बाद गलने की जगह और कड़क हो गई।
नदी या कुण्ड में नही गलने के बाद अब इन प्रतिमाओं का आगे क्या होगा इसको समझना कोई बहुत बड़ा रॉकेट साइंस नही है। अनंत चतुर्दशी पर हरदा की अजनाल नदी के पास नगर पालिका ने एक कुंड बनाया था। इस कुंड में विसर्जित की गई पीओपी की प्रतिमाओं की क्या स्थिति है, यह कुण्ड के पास जाने के बाद आप स्वयं समझ सकते हैं। हंडिया-नेमावर तट पर नर्मदा नदी में भी पीओपी की प्रतिमाएं विसर्जित की गई जो अब नही गलने के कारण बहकर किनारों पर आ गई है। शास्त्रों में प्रतिमा विसर्जन का बड़ा महत्व है लेकिन यह प्रतिमाएं जल में विलीन हो ही नही रही है। 13 अक्टूबर से नवरात्री शुरू होने वाली है ऐसे में यह प्रश्न खड़ा होना स्वाभाविक ही है कि क्या हमें पीओपी की प्रतिमाओं को विराजित करना चाहिए जो पूर्णतः विसर्जित ही नही होती है। विसर्जित का अर्थ जल में विलीन होना पंडित विजय दुबे ने बताया कि प्रतिमाओं को स्थापित और विराजित किया जाता है। प्राण प्रतिष्ठा कर प्रतिमाओं को स्थायी रूप से स्थापित किया जाता है और उत्सवों के दौरान प्रतिष्ठा कर प्रतिमाओं को विराजित किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार विराजित करने के लिए मिट्टी की प्रतिमाओं का महत्व है। प्राचीन समय में भी मिट्टी की ही प्रतिमाएं विराजित होती थी। इन प्रतिमाओं के निर्माण में मिट्टी के साथ पानी मिलाया जाता है, फिर हवा में सुखाया जाता है। आकाश के नीचे सूर्य की ऊर्जा से ये प्रतिमाएं सूखकर मजबूत होती है, इसलिए यह पांचो तत्व इन प्रतिमाओं में समा जाते हैं। विजर्सन के बाद यह तत्व फिर से प्रकृति में मिल जाते हैं। विराजित प्रतिमाओं का विसर्जन करना अनिवार्य है।
विसर्जन का अर्थ जल में विलीन होना होता है। जिस प्रकार हम विराजित के समय देवी-देवाताओं को अपने यहां आमंत्रित करते हैं, उसी प्रकार विसर्जन के दौरान हम उन्हे सम्मान पूर्वक उन्हे उनके धाम जाने का आग्रह और अगले साल वापस आने के लिए आमंत्रित करते हैं। 2013 में लगाई थी रोक प्रदूषण को रोकने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिसंबर 2013 में एक आदेश जारी किया था। इसके तहत मूर्ति निर्माण में प्लास्टर ऑफ पेरिस और केमिकल रंगों के उपयोग पर रोक लगाई थी। इसके साथ ही एनजीटी ने विसर्जन के दौरान भी सावधानी बरतने की हिदायत दी थी, ताकि जल जीवों को किसी तरह का खतरा न हो। इसलिए खतरनाक पीओपी पीओपी में भारी मात्रा में खतरनाक केमिकल्स होते हैं जो जल प्रदूषित कर जलीव जीवो पर तो प्रभाव डालते ही हैं, साथ ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होते हैं। इसमें लेड, मरकरी, कैडमियम, आर्सेनिक, कोबाल्ट, कॉपर, जिंक, आयरन, मैग्नीशियम, निकल, क्रोमियम समेत दो दर्जन केमिकल पाए जाते हैं। इन सभी केमिकल का लेवल बढने पर अनेक बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही पानी में मिलने के बाद पीओपी और अधिक हार्ड हो जाता है, जो कभी खत्म नहीं होता है।