Dhan Prapti Ke Upay: आर्थिक तंगी से हैं परेशान, तो धन प्राप्ति के लिए करें ये उपाय
Dhan Prapti Ke Upay कुंडली में शुभ ग्रहों की स्थिति मजबूत होने पर व्यक्ति को करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। वहीं अशुभ ग्रहों के प्रभाव से धन संबंधी परेशानी होती है। आर्थिक स्थिति चरमराने से व्यक्ति को ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Dhan Prapti Ke Upay: आजकल हर कोई अपने जीवन में सफल इंसान बनना चाहता है। इसके लिए लोग कड़ी मेहनत भी करते हैं। कुंडली में शुभ ग्रहों की स्थिति मजबूत होने पर व्यक्ति को करियर और कारोबार में मन मुताबिक सफलता मिलती है। वहीं, अशुभ ग्रहों के प्रभाव से धन संबंधी परेशानी होती है। आर्थिक स्थिति चरमराने से व्यक्ति को ढेर सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी आर्थिक तंगी से परेशान हैं, तो धन प्राप्ति के लिए ये उपाय जरूर करें। आइए जानते हैं-
सुबह में करें ये काम
- अगर आप सृष्टि के रचयिता देवों के देव महादेव का आशीर्वाद पाना चाहते हैं, तो सोमवार के दिन विधि-विधान से शिवजी की पूजा करें। साथ ही रूद्राक्ष की माला से 'ऊँ नम शिवाय:' मंत्र का जाप करें। इसके अलावा, चंद्र देव को कच्चे दूध से अर्घ्य दें।
- अगर आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं, तो सोमवार या शनिवार के दिन दो मुठ्ठी गेंहू में 2 दाने केसर और 11 तुलसी दल मिलाकर पीस लें। अब मिश्रण को सामान्य आटे में मिला लें। इसके पश्चात, रोटियां बनाकर खाएं। इस उपाय को करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। उनकी कृपा से धन में वृद्धि होती है।
- कुंडली में अशुभ ग्रहों के प्रभाव के चलते आर्थिक विषमता आती है। इसके लिए रोजाना स्नान-ध्यान करने के बाद पीपल के पेड़ को जल अर्पित करें। पीपल के पेड़ में देवी-देवताओं समेत पितरों का वास रहता है। अतः पीपल पेड़ की पूजा करने से त्रिदेव प्रसन्न होते हैं। साथ ही कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव क्षीण होता है।
- अगर आप चंद दिनों में धनवान बनना चाहते हैं, तो शुक्रवार के दिन मिट्टी के एक पात्र में लाल रंग के कपड़े में चांदी का सिक्का बांधकर रख दें। अब इसके ऊपर साबुत अनाज गेंहू या चावल रख दें। इस पात्र को घर के वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) में रख दें। इस उपाय को करने से आय और भाग्य में वृद्धि होती है।
- हर शुक्रवार के दिन स्नान-ध्यान करने के पश्चात मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करें। इस दिन घर में मौजूद सोने के किसी गहने को अच्छी तरह कर लें। अब पूजा स्थल पर गहना रख विधिवत पूजा करें। इस समय गहने पर केसर का तिलक लगाएं। इसके बाद कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। इस उपाय को करने से धन की प्राप्ति होती है।
॥ श्री कनकधारा स्तोत्र ॥
अङ्ग हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती
भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम् ।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥1॥
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि ।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥2॥
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्ष –
मानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि ।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्ध –
मिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥3॥
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्द –
मानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम् ।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥4॥
बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति ।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला
कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥5॥
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारे –
र्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव ।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्ति –
र्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥6॥
प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्
माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥7॥
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारा –
मस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥8॥
इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्र –
दृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥9॥
गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै
तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥10॥
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै
पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥11॥
नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै
नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥12॥
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि
साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि
मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये ॥13॥
यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः
सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङ्गमानसै
स्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ॥14॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥15॥
दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्ट –
स्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष –
लोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम् ॥16॥
कमले कमलाक्षवल्लभे
त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥17॥
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिन
भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः ॥18॥
डिसक्लेमर-'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '
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