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    अपनी नकारात्मक सोच को पॉजिटिव कैसे बनाएं

    By Preeti jhaEdited By:
    Updated: Tue, 22 Mar 2016 09:21 AM (IST)

    नकारात्मक सोच के अंधेरे से बाहर निकलने के लिए हमें अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना होता है। थोड़े से प्रयास से दृष्टिकोण को बदलकर हम सकारात्मकता के प्रकाश की ओर बढ़ सकते हैं।

    नकारात्मक सोच के अंधेरे से बाहर निकलने के लिए हमें अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना होता है। थोड़े से प्रयास से दृष्टिकोण को बदलकर हम सकारात्मकता के प्रकाश की ओर बढ़ सकते हैं।

    बहुत से लोग इस बात को लेकर परेशान रहते हैं कि अपनी नकारात्मक सोच को पॉजिटिव कैसे बनाएं। अमेरिकी लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर जिम रॉन ने कहा है कि आप वास्तव में जो चाहते हैं, आपका मस्तिष्क स्वत: ही आपको उस दिशा में खींच ले जाता है। इसलिए नकारात्मकता के अंधेरे से आप सकारात्मकता के उजाले में आसानी से आ सकते हैं। बस, आपको अपने मस्तिष्क में बने हुए अपने दृष्टिकोण और उसकी शब्दावली में थोड़ा

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    सा हेर-फेर करना होगा।

    हम सब यह जानते हैं कि नकारात्मक सोच का परिणाम कितना घातक होता है। इन विचारों को रोकने के लिए आपको अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना होगा। असल में आपका दिमाग जिस अवस्था में इस समय है, उसके लिए वर्षों तक उसे प्रशिक्षित किया गया है। हम सकारात्मक या नकारात्मक जैसे भी हैं, यह उसी प्रशिक्षण का परिणाम है। जिस तरह से आपने उसे प्रशिक्षित किया है, उसी तरह अब उसे नई दिशा में प्रशिक्षित करना होगा। आपने यदि अपने नकारात्मक विचारों को सकारात्मकता में बदलने का संकल्प ले लिया है, तो आप इन बातों पर चलकर सफल हो सकते हैं :

    खुद से करें वादा

    खुद से वादा करें कि आप ‘इस क्षण’ के लिए समर्पित रहेंगे। इसका मतलब यह है कि आज, अभी जो क्षण है, वही आपका है और आपको उसका पूरा उपभोग करना होगा। अगला जो क्षण आएगा, वह भी ‘इस क्षण’ हो जाएगा। इस सोच से आपका विचार, दिमाग और जीवन सब परिष्कृत हो जाएगा। आप इस तरह से संकल्प ले सकते हैं, ‘जब भी मेरे दिमाग में कोई नकारात्मक विचार आएगा तो मैं उस पर विचार नहीं करूंगा और न ही उसका प्रतिरोध करूंगा। मैं सामान्य तरीके से उसे स्वीकार कर उसकी उपस्थिति को समझूंगा और अंतत: उससे बाहर निकल जाऊंगा। मैं खुद को नकारात्मक विचारों से हटाकर सकारात्मक विचार लाने का विशेषज्ञ बना दूंगा। मैं खुद से वादा करता हूं कि खुद को सबसे सुंदर, सकारात्मक और खुशहाल व्यक्ति बनाऊंगा।’

    परिणाम को दिमाग में रखें

    अपने मस्तिष्क की आंख से अंतिम परिणाम देखिए। यह देखिए कि यदि आप अपने सोचने का तरीका बदल लें,

    तो आपके जीवन में कितना अंतर आ जाएगा। उस भावना का अनुभव करें, जो एक सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति बनने के बाद आती है। जोश, शांति और आनंद की भावना का अनुभव करें। आप यह मानें कि आपके अंदर ये सब भावनाएं हैं। लेखक विलियम आर्थर वार्ड ने कहा है कि यदि आप कल्पना कर सकते हैं, तो आप उसे हासिल भी कर सकते हैं। आप यदि सपने देख सकते हैं, तो उसे पूरा भी कर सकते हैं। फिर आप अपनी कल्पना के घोड़े को प्रचंड तरीके से आगे ही आगे बढ़ने दें और खुद को आदर्श तथा सकारात्मक

    अनुभव करें।

    अभिनय हो जाएगा सच

    भले ही आप अभिनय करें, लेकिन इस तरह प्रदर्शित करें कि आप वर्तमान में हैं, आप खुश हैं, आप प्रिय और खुशहाल व्यक्ति हैं। वैसा ही अभिनय करें, जैसा कि आप होने की इच्छा रखते हैं। एक समय ऐसा आएगा, जब आपका मस्तिष्क इतना बदल जाएगा कि आप वास्तव में वैसे ही हो जाएंगे। अपनी भाव-भंगिमा को जांचें, अपने चेहरे के हाव-भाव, दूसरों से संवाद करने के तरीके, सब पर गौर करें। यह सुनिश्चित करें कि आप सकारात्मक

    व्यक्ति की तरह व्यवहार करेंगे। कड़वे सच का सामना करें आपने यह देखा होगा कि हममें से बहुत से लोग जीवन भर प्रतिरोध, दमन, नकारात्मकता और दूषित विचारों का सामना करते हैं, इसलिए सकारात्मक विचारों की ओर जाना इतना आसान भी नहीं है। हमारे भीतर हर स्थिति की समझ और करुणा की जरूरत होती है। हम खुद को अच्छे विचार नहीं देंगे तो यह काम कौन कर सकता है? आपके अंदर जितने ज्यादा समय तक नकारात्मक विचार हावी रहे हैं, उससे बाहर निकलने में उतनी ही मुश्किल आती है।

    वर्तमान में रहना महत्वपूर्ण

    वर्तमान में रहने का प्रयास करें। अपना दिमाग आज या अभी जो कुछ हो रहा है, उसी पर केंद्रित रखें। अतीत को पीछे छोड़ दें और भविष्य का इंतजार करना बंद करें, तभी आप खुशहाल रह सकते हैं। अगर आप अपना खेल अभी खेलेंगे, तभी बेस्ट परफॉर्मेंस दे पाएंगे, क्योंकि वर्तमान पर कोई दबाव नहीं होता। दबाव तब बनता है, जब आप भविष्य के बारे में अधीरता रखते हैं और अतीत की विफलताओं को याद करते रहते हैं।

    खुद को करें प्रोत्साहित

    जब भी आपको लगता हो कि आप विफल हो रहे हैं, तो खुद से उसी तरह बात करना शुरू कर दें, जैसे आप किसी बच्चे से करते हैं - प्यार, करुणा और प्रोत्साहन के साथ। इससे आप खुद को मानसिक रूप से ऊपर उठाना सीख जाएंगे और हर समय आपका मनोबल ऊंचा रहेगा।

    चिंता छोड़ें, बेफिक्र रहें

    अपने जीवन को सौहार्दपूर्ण और प्रिय तरीके से जीना सीखें। अपनी सभी चिंताओं और तनाव को दूर भगाएं और

    खुश रहें। अपने को उस रूप में स्वीकार करें, जो आप इस क्षण हैं। अपने दिल, आत्मा, शरीर और दिमाग का अच्छी तरह से ख्याल रखें, तो आप अपने लिए और दूसरों के लिए भी खुशहाली का सृजन कर पाएंगे।

    गीता-संदेश अर्थ : श्रद्धा रखने वाले अपनी इंद्रियों पर संयम कर ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। वहीं ज्ञान मिल जाने पर, जल्द ही परम शांति को प्राप्त होते हैं। भावार्थ : श्रीकृष्ण के अनुसार, ज्ञान से ही परम शांति मिलती है। लेकिन ज्ञान का आना सहज नहींहोता। ज्ञान के लिए आपको एकमात्र श्रद्धा का सहारा लेना होगा। श्रद्धा का एक अर्थ किसी को जानने की उत्कट इच्छा है। बिना जानने की इच्छा के हम किसी को भी जान नहीं सकते। जान लेने

    के बाद ही हम उसे मान पाते हैं और हमारी श्रद्धा पूर्णता पा लेती है। जिसके अंदर जानने और मानने की अगाध इच्छा होती है, वही श्रद्धालु है और वही ज्ञानी भी। जब हम जान और मान लेते हैं अर्थात ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, तब हमारे भीतर की हलचल समाप्त हो जाती है। हमारी इंद्रिया हमारे भीतर व्यवस्थित और स्थिर हो जाती

    हैं। हमारी जुगुप्सा मिट जाती है और हमें परम शांति का अनुभव होता है।

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