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    Holi 2023: जानिए कैसे हुई थी रंगों के उत्सव की शुरुआत? श्री कृष्ण और राधा रानी से जुड़ी है यह अनोखी कथा

    By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo Mishra
    Updated: Wed, 08 Mar 2023 06:43 AM (IST)

    Holi 2023 शास्त्रों में भगवान श्री कृष्ण की कई लीलाएं वर्णित की गई हैं। लेकिन क्या आप हैं कि रंगवाली होली की शुरुआत में उनका और ग्वालों का बहुत हाथ था। आइए जानते हैं कैसे हुई थी रंगवाली होली की शुरुआत।

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    Holi 2023: यहां पढ़िए कैसे हुई थी रंगवाली होली की शुरुआत?

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Holi 2023, Holi Ki Katha: आज देश के कई हिस्सों में होली की धूम देखी जाएगी। बता दें कि प्रत्येक वर्ष फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन होलिका दहन का आयोजन किया जाता है और अगले दिन रंगवाली होली खेली जाती है।

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    भगवान श्री कृष्ण की नगरी ब्रज में इस पर्व को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां होली पर्व की शुरुआत 40 दिन पहले से हो जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रंग वाली होली की शुरुआत कब हुई थी? आइए आज हम जानेंगे इस पर्व से जुड़ी पौराणिक कथा और वैज्ञानिक कारण।

    कैसे हुई थी रंग वाली होली की शुरुआत? (When was Rangwali Holi Started?)

    पौराणिक कथा एवं पुराणों के अनुसार रंग वाली होली खेलने का संबंध भगवान श्रीकृष्ण और ब्रज की किशोरी राधा रानी से है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण ने ग्वालों के संग मिलकर होली खेलने की प्रथा शुरू की थी। यही कारण है कि आज भी ब्रज में धूमधाम से होली खेली जाती है। लड्डू होली, फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंग और अबीर की खेली जैसे कई नामों से इस उत्सव को मनाया धूमधाम से जाता है।

    पौराणिक कथा (Holi Ki Katha)

    प्राचीन किंवदंतियों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का रंग सांवला था और राधा रानी गोरी थीं। इस बात की शिकायत श्री कृष्ण ने मैया यशोदा से कई बार की और मैया उन्हें समझा-बुझाकर टालती रहीं। लेकिन जब वह नहीं माने तो मैया ने यह सुझाव दिया कि जो तुम्हारा रंग है, उसी रंग को राधा के चेहरे पर भी लगा दो। तब तुम्हारा और राधा का रंग एक जैसा हो जाएगा। नटखट कृष्ण को मैया का यह सुझाव बहुत पसंद आया और उन्होंने मित्र ग्वालों के संग मिलकर कुछ अनोखे रंग तैयार किए और ब्रज में राधा रानी को रंग लगाने पहुंच गए। श्री कृष्ण ने साथियों के साथ मिलकर राधा और उनकी सखियों को जमकर रंग लगाया। ब्रज वासियों को उनकी यह शरारत बहुत पसंद आई और तब से रंग वाली होली का चलन शुरू हो गया। जिसे आज भी उसी उत्साह के साथ खेला जाता है।

    होली पर्व का वैज्ञानिक महत्व (Holi 2023 Importance)

    जैसा कि हम जानते हैं कि रंग वाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि पवित्र अग्नि जलाने से वातावरण शुद्ध हो जाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही इससे कई कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और होलिका दहन की अग्नि से नई ऊर्जा का प्रभाव वातावरण में फैल जाता है, जिसे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है।

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    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।