Hindu Marriage: इन रस्मों के बिना अधूरा है हिंदू विवाह, जानें इनका धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म (Hindu Marriage) में विवाह को 16 संस्कारों में शामिल किया गया है। विवाह का कार्यक्रम केवल एक दिन तक नहीं चलता बल्कि इसकी रस्में कई दिन पहले से ही शुरू हो जाती हैं। विवाह के दौरान हल्दी मेहंदी जैसी कई रस्में निभाई जाती हैं जिनके बिना विवाह अधूरा माना जाता है। इनमें से कई रस्मों का वैज्ञानिक महत्व भी है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। विवाह, व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हिंदू धर्म में विवाह (Indian Wedding Rituals) में कई रस्में निभाई जाती हैं, जिन्हें धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। तो चलिए जानते हैं हिंदू विवाह से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण रस्में। साथ ही जानते हैं इन रिवाजों का धार्मिक महत्व।
क्यों जरूरी है हल्दी की रस्म
हिंदू धर्म में विवाह के दौरान हल्दी की रस्म (Significance Of Haldi Ceremony) मुख्य रूप से की जाती है। यह रस्म विवाह से कुछ दिन पहले की जाती है, जिन्में दुल्हा-दुल्हन को हल्दी का लेप लगाया जाता है। यह निखार लाने का काम तो करती ही है, साथ ही यह रस्म दूल्हा-दुल्हन को नकारात्मक ऊर्जा से बचाने का काम भी करती है।
इसलिए लगाई जाती है मेहंदी
भारतीय विवाह में न केवल दुल्हन को बल्कि दूल्हे को भी मेहंदी लगाई जाती है। यह रस्म सदियों से चली आ रही है। हिंदू धर्म में मेहंदी (Mehndi Ritual Importance) को सुहाग की निशानी के रूप में देखा जाता है। यह न केवल दुल्हा-दुल्हन के सौंदर्य में वृद्धि करती है, बल्कि मेहंदी को सौभाग्य, प्यार, समृद्धि के रूप में भी देखा जाता है।
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इसके बिना विवाह नहीं होता सम्पन्न
हिंदू विवाह में दूल्हा-दुल्हन अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं, जिसे सप्तपदी भी कहा जाता है। इस दौरान दूल्हा-दुल्हन सात वचन भी लेते हैं और एक-दूसरे के प्रति समर्पण का वादा करते हैं। पहले तीन फेरों में दुल्हन आगे रहती है और बाद के चार फेरों में दूल्हा आगे चलता है। यह हिंदू विवाह का एक महत्वपूर्ण अंग है, जिसके बिना शादी सम्पन्न नहीं होती।
इसे कहा जाता है महादान
कन्यादान, (Significance Of Kanyadaan) हिंदू विवाह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे सबसे पवित्र रस्मों में से एक माना जाता है। इस प्रथा के बिना हिंदू विवाह अधूरा माना जाता है। इस रस्म में माता-पिता अपनी कन्या दूल्हे को सौंप देते हैं। हिंदू शास्त्रों में कन्यादान को ‘महादान’ भी कहा गया है।
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