Hanuman Puja: मंगलवार के दिन इस नियम से करें हनुमान चालीसा का पाठ, सभी संकटों से मिलेगा छुटकारा
मंगलवार का दिन बहुत शुभ माना जाता है। यह दिन हनुमान जी की पूजा के लिए समर्पित है। पवन पुत्र की उपासना से सभी दुखों का अंत होता है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त मंगलवार का व्रत रखते हैं उन्हें सुख और शांति का आशीर्वाद मिलता है। वहीं इस दिन हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) का पाठ भी बहुत लाभकारी माना गया है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। मंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित है। इस दिन उनकी विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है, क्योंकि वे अपने भक्तों के सभी कष्टों और परेशानियों को दूर करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंगलवार के दिन हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa Ka Path) का पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है और सभी संकटों से मुक्ति मिलती है, लेकिन इस पाठ को करने के कुछ विशेष नियम हैं, जिनका पालन करने से इसका पूरा फल मिलता है, तो आइए जानते हैं।
हनुमान चालीसा पाठ के नियम (Hanuman Puja Rules)
- हनुमान चालीसा का पाठ करने से पहले स्नान आदि करके साफ कपड़े पहनें।
- पूजा के लिए एक शांत और पवित्र स्थान चुनें।
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- हनुमान जी की प्रतिमा के सामने पाठ करें।
- हनुमान जी को लाल फूल, सिंदूर, चंदन, धूप, दीप और नैवेद्य आदि चीजें अर्पित करें।
- घी या चमेली के तेल का दीपक जलाएं।
- पाठ करते समय कुश या ऊनी आसन का प्रयोग करें।
- हनुमान चालीसा के प्रत्येक शब्द का स्पष्ट और सही से उच्चारण करें।
- धीरे-धीरे और लयबद्ध तरीके से पाठ करें।
- पाठ समाप्त होने के बाद हनुमान जी की भाव के साथ आरती करें।
- अंत में भूलचूक के लिए माफी मांगे।
।।हनुमान चालीसा का पाठ।।
।। दोहा।।
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ।।
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ।।
।। चौपाई ।।
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुं लोक उजागर ।।
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।
हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै । कांधे मूंज जनेउ साजै ।।
शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जगवंदन ।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ।।
भीम रूप धरि असुर संहारे । रामचन्द्र के काज संवारे ।।
लाय सजीवन लखन जियाए । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते । कबि कोबिद कहि सके कहां ते ।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ।।
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ।।
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक तै कांपै ।।
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावै ।।
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।
संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।।
सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ।।
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ।।
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ।।
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ।।
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ।।
अंतकाल रघुवरपुर जाई । जहां जन्म हरिभक्त कहाई ।।
और देवता चित्त ना धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।।
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ।।
जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मह डेरा ।।
।। दोहा ।।
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।
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