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    Lord Hanuman Puja: वीर बजरंगी को प्रसन्न करने के लिए करें ये पाठ, होगा सभी दुखों का नाश

    मंगलवार के साथ शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा बेहद कल्याणकारी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो जातक वीर बजरंगी की पूजा सच्चे दिल से करते हैं उनके जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं। ऐसे में शनिवार या फिर किसी भी मंगलवार के दिन भगवान हनुमान की पूजा विधि अनुसार करें। इसके बाद उनके कवच का पाठ करें जो यहां दिया गया है।

    By Vaishnavi Dwivedi Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Sat, 08 Jun 2024 08:24 AM (IST)
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    Lord Hanuman Puja: हनुमान कवच का पाठ -

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। सनातन धर्म में वीर हनुमान की पूजा बेहद शुभ मानी जाती है। उन्हें कलयुग का देवता भी कहा जाता है। मंगलवार के साथ शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा बेहद कल्याणकारी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो जातक वीर बजरंगी की पूजा सच्चे दिल से करते हैं, उनके जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं।

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    ऐसे में शनिवार या फिर किसी भी मंगलवार के दिन भगवान हनुमान की पूजा विधि (Lord Hanuman Puja) अनुसार करें। इसके बाद उनके कवच का पाठ करें, जो यहां दिया गया है।

     ।।हनुमान कवच का पाठ।।

    ।। श्री गणेशाय नम:।।

    ओम अस्य श्रीपंचमुख हनुम्त्कवचमंत्रस्य ब्रह्मा रूषि:।

    पंचमुख विराट हनुमान देवता। ह्रीं बीजम्।

    श्रीं शक्ति:। क्रौ कीलकम्। क्रूं कवचम्।

    क्रै अस्त्राय फ़ट्। इति दिग्बंध्:।

    श्री गरूड उवाच्।।

    अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि।

    श्रुणु सर्वांगसुंदर।

    यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत्: प्रियम्।।

    पंचकक्त्रं महाभीमं त्रिपंचनयनैर्युतम्।

    बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिध्दिदम्।।

    पूर्वतु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्।

    दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटीकुटिलेक्षणम्।।

    अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्।

    अत्युग्रतेजोवपुष्पंभीषणम भयनाशनम्।।

    पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्।

    सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्।।

    उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दिप्तं नभोपमम्।

    पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्।

    ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्।

    येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यमं महासुरम्।।

    जघानशरणं तस्यात्सर्वशत्रुहरं परम्।

    ध्यात्वा पंचमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्।।

    खड्गं त्रिशुलं खट्वांगं पाशमंकुशपर्वतम्।

    मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुं।।

    भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रा दशभिर्मुनिपुंगवम्।

    एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्।।

    प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरण्भुषितम्।

    दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानु लेपनम सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतोमुखम्।।

    पंचास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं शशांकशिखरं कपिराजवर्यम्।

    पीताम्बरादिमुकुटै रूप शोभितांगं पिंगाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि।।

    मर्कतेशं महोत्राहं सर्वशत्रुहरं परम्।

    शत्रुं संहर मां रक्ष श्री मन्नपदमुध्दर।।

    ओम हरिमर्कट मर्केत मंत्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले।

    यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुंच्यति मुंच्यति वामलता।।

    ओम हरिमर्कटाय स्वाहा ओम नमो भगवते पंचवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा।

    ओम नमो भगवते पंचवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाया।

    ओम नमो भगवते पंचवदनाय पश्चिममुखाय गरूडाननाय सकलविषहराय स्वाहा।

    ओम नमो भगवते पंचवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा।

    ओम नमो भगवते पंचवदनाय उर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा।

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