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    Hanuman ji in Mahabharat: महाभारत में कहां मिलता है हनुमान जी का वर्णन? इस तरह तोड़ा भीम का घमंड

    Updated: Thu, 22 Feb 2024 04:40 PM (IST)

    महाभारत ग्रंथ के रचयिता महर्षि वेद-व्यास हैं। यह एक ऐसा ग्रंथ हैं जो व्यक्ति को यह प्रेरणा देता है कि उसे अपने जीवन में किन गलतियों को करने से बचना चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि त्रेतायुग के साथ-साथ हनुमान जी का वर्णन महाभारत यानी द्वापरयुग में भी मिलता है। चलिए जानते हैं कि महाभारत में हनुमान जी का वर्णन कहां मिलता है।

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    Lord Mahabharat in Mahabharat महाभारत में यहां मिलता है हनुमान जी का वर्णन?

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Hanuman In Mahabharata: हनुमान जी रामायण के मुख्य पात्रों में से एक हैं, जो त्रेतायुग से संबंधित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी का वर्णन महाभारत काल यानी द्वापर युग में भी मिलता है। इन दोनों युगों के बीच हजारों वर्षों का अंतर है। असल में हनुमान जी उन चीरनजीवियों में से एक हैं, जिन्हें अमरता का वरदान प्राप्त है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसान हनुमान जी ने महाभारत के युद्ध में अहम भूमिका निभाई थी। 

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    भीम और हनुमान जी का मिलन

    महाभारत में वर्णित वाना पर्व के अनुसार, द्वापर युग में हनुमान जी की भेंट भीम से होती है। पौराणिक घटना के अनुसार एक बार भीम किसी काम से वन के रास्ते से होकर गुजरते हैं। तभी उनकी नजर रास्ते में लेटे एक वानर पर पड़ती है, जो रास्ते के ठीक बीच में लेटा होता है। इस दौरान भीमसेन, उसे साधारण वानर समझ लेते हैं और उन उन्हें रास्ता छोड़ने को कहते हैं। लेकिन वानर इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता।

    वानर ने दिखाया असली रूप

    इस पर भीम को क्रोध आ जाता है और वह अपनी शक्ति के बारे में वानर को बताने लगता है। इस पर वह वानर कहता है कि में एक बूढ़ा वानर हूं और मुझमें उठने की शक्ति नहीं है। तुम मेरी पूंछ उठाकर आगे निकल जाओ। इस पर भीम, वानर की पूछ उठाने के लिए आगे बढ़ते हैं, लेकिन पूछ को हिला तक नहीं पाते। तब उन्हें यह आभास होता है, कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। तब भीम ने उस वानर से क्षमा मांगते हैं। इस पर वह वानर अपने असली रूप यानी हनुमान जी के विराट रूप में प्रकट होकर भीम को दर्शन देते हैं।

    युद्ध में भी साथ थे हनुमान जी

    माना जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान हनुमान जी, अर्जुन के रथ पर ध्वज के रूप में पूरे विराजमान थे। महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला था। इस दौरान अर्जुन और उनके रथ की रक्षा हनुमान जी ने ही की थी। यही कारण है कि भंयकर हमलों के बाद भी अर्जुन के रथ को कोई हानि नहीं पहुची। अंत में जब अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण रथ से उतर गए, तब हनुमान जी ने भी रथ को छोड़ दिया, जिसके परिणामस्वरूप रथ पूरी तरह से तहस-नहस होया। 

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'