गुरु हरकिशन की जिंदगी से जुड़ा रोचक प्रसंग
जनभावना को देखते हुए औरंगजेब भी उन्हें मना नहीं कर सका। लेकिन साथ ही साथ औरंगजेब ने राम राय जी को शह भी देकर रखी, ताकि सामाजिक मतभेद उजागर हों। ...और पढ़ें

गुरू हर किशन जी सिखों के आठवें गुरू थे। उनकी माता का नाम किशन कौर और पिता का नाम गुरु हर राय साहिब था। गुरु हर किशन जी के जीवन से जुड़ा एक रोचक प्रसंग मिलता है। एक बार राजा जयसिंह ने बहुत सी महिलाओं को गुरू हर किशन के सामने खड़ा किया। और कहा इन महिलाओं में से असली रानी को पहचानें।
तब गुरू हर किशन एक महिला जो नौकरानी की वेशभूषा में थीं, उनके नजदीक पहुंचे। यह महिला ही उनकी असली रानी थी। इससे उनकी बौद्धिक कुशलता का पता चलता है। गुरु हरकिशन जी राम राय जी के छोटे भाई थे।
गुरु हर किशन जी मित्रवत् व्यवहार करने वाले व्यक्ति थे। उनकी लोकप्रियता दूर-दूर तक फैली हुई थी। इसी दौरान दिल्ली में हैजा और छोटी माता जैसी बीमारियों का प्रकोप महामारी लेकर आया। मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील थी। तब गुरू हर किशन ने सभी भारतीयों की सेवा का अभियान चलाया।
जनभावना को देखते हुए औरंगजेब भी उन्हें मना नहीं कर सका। लेकिन साथ ही साथ औरंगजेब ने राम राय जी को शह भी देकर रखी, ताकि सामाजिक मतभेद उजागर हों।
दिन रात महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते गुरू हरकिशन जी अपने आप भी तेज ज्वर से पीड़ित हो गए। छोटी माता के अचानक प्रकोप ने घेर लिया। जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अंत अब निकट है।
जब उन्हें अपने उत्तराधिकारी को नाम लेने के लिए कहा, तो उन्हें केवल 'बाबा बकाला' का नाम लिया। यह शब्द गुरू तेगबहादुर साहिब जो कि पंजाब में ब्यास नदी के किनारे स्थित बकाला गांव में रह रहे थे, के लिए प्रयोग हुआ था। अंत समय में गुरू साहिब सभी लोगों से कहा कि, 'कोई भी उनकी मृत्यु पर रोयेगा नहीं।'

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