Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    अहंकार मुक्त थे गुरु अर्जुन देव जी

    By Edited By:
    Updated: Thu, 02 May 2013 02:52 PM (IST)

    सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी का जन्म 17 वैशाख, संवत 1620 वि. [2 मई 1563 ई.] को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। वे पिता चौथे गुरु श्री रामदास जी ...और पढ़ें

    Hero Image

    सिखों के पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी का जन्म 17 वैशाख, संवत 1620 वि. [2 मई 1563 ई.] को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। वे पिता चौथे गुरु श्री रामदास जी एवं माता बीबी भानी जी के घर तीसरे पुत्र के रूप में जन्मे। उनके नाना तीसरे गुरु श्री अमरदास जी ने उनकी गुरबाणी में गहरी रुचि को देखते हुए उन्हें 'दोहता-बाणी का बोहिथा' [नाती- वाणी का जहाज] की संज्ञा दी

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    तीसरे गुरु के ज्योति-जोत समाने के बाद 1574 ई. में अर्जुन देव जी गुरु पिता के पास आ गए और अमृतसर के निर्माण में हाथ बंटाने लगे। उनकी भक्ति, सेवा, त्याग-भावना और श्रेष्ठ व्यक्तित्व को देखते हुए चौथे गुरु श्री रामदास जी ने 1581 ई. में ज्योति जोत समाने से पूर्व दोनों बड़े पुत्रों को अयोग्य मानते हुए अर्जुन देव जी को गुरु-गद्दी सौंप दी। चतुर्थ गुरु ने उद्गार व्यक्त किए - सरब सरारहि गुरता भार। अजर जरहिगो, नहि हंकार।। अर्थात 'यह ही गुरु-गद्दी का भार उठाने योग्य है, क्योंकि इसमें लेश मात्र भी अहंकार नहीं..'। माता बीबी भानी जी ने अर्जुन देव जी से कहा - 'पुत्र! यह कभी मत भूलना कि गुरु नानक देव जी ने 'गुरुगद्दी' दास को दी, पुत्रों को नहीं। गुरु अंगद देव जी और गुरु अमर दास जी ने भी सेवा की महानता को देखा। आप भी उन्हीं की तरह व्यवहार करना..। यह न भूलना कि गुरु साहिबान में मोह नहीं होता। वे सेवक की सेवा पर ही रीझते रहे हैं- नहीं गुरनि कै मोह कदाई। रीझहि सेवक दे बड़ाई।।

    अपने विनम्र व्यक्तित्व के कारण पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी ने संवत् 1638 वि. [16 सितंबर, 1581 ई.] को गुरु पिता से गुरु-गद्दी प्राप्त की। उस समय उनकी उम्र मात्र 18 वर्ष और 4 माह की थी।

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर