Gupt Navratri में ऐसे करें देवी दुर्गा को प्रसन्न, नहीं सताएगी धन की चिंता
हर साल प्रकट नवरात्र की तरह ही 2 बार मनाई जाने वाली गुप्त नवरात्र का भी विशेष महत्व है। जिसमें से एक गुप्त नवरात्र माघ माह में आती है और दूसरी आषाढ़ माह में। गुप्त नवरात्र के दिन मुख्य रूप से 10 महाविद्याओं की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित माने गए हैं। ऐसे में आप पूजा के दौरान माता दुर्गा अमोघ मंत्रों का जाप कर विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। गुप्त नवरात्र के दौरान 10 महाविद्याओं की पूजा गुप्त रूप से करने का विधान है, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र के रूप में जाना जाता है। यह पूजा मुख्य तौर पर अघोरियों और तांत्रिकों द्वारा की जाती है। ऐसा भी कहा जाता है महाविद्याओं की पूजा, जिनती गुप्त तरीके से की जाए, उनका लाभ उतना ही मिलता है।
इस साल आषाढ़ गुप्त नवरात्र की शुरुआत 06 जुलाई, शनिवार के दिन से हो चुकी है, जो 15 जुलाई, 2024 तक रहेंगे। ऐसे में आप इस विशेष तिथि पर मां दुर्गा के मंत्रों का जाप कर, अपने सौभाग्य में वृद्धि कर सकते हैं।
देवी दुर्गा ध्यान मंत्र -
ॐ जटा जूट समायुक्तमर्धेंन्दु कृत लक्षणाम|लोचनत्रय संयुक्तां पद्मेन्दुसद्यशाननाम॥
पिण्डज प्रवरा चण्डकोपास्त्रुता।प्रसीदम तनुते महिं चंद्रघण्टातिरुता।।
पिंडज प्रवररुधा चन्दकपास्कर्युत ।प्रसिदं तनुते महयम चंद्रघंतेति विश्रुत।
ह्रीं शिवायै नम:
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
ऐं श्रीं शक्तयै नम:
ऐं ह्री देव्यै नम:
ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:
क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:
श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
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अन्य प्रभावशाली मंत्र
1. ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्, ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।
2. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
3. ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै।
4. क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥
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