मार्गदर्शन: स्वयं के निश्छल प्रयासों से दूसरों के जीवन को सही दशा देना ही मार्गदर्शन है
इंसान को सबसे पहला मार्गदर्शन माता-पिता से मिलता है। बच्चा कुछ बड़ा होता है तो उसे गुरु का सान्निध्य प्राप्त होता है। गुणवान गुरु के मार्गदर्शन को कौन झुठला पाया है। गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर मंत्र में गुरु को ईश्वर समान माना गया है।
स्वयं के निश्छल प्रयासों से दूसरों के जीवन को सही दशा देना ही मार्गदर्शन है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीवनयात्रा के हर पड़ाव पर मार्गदर्शक की आवश्यकता पड़ती है। मार्गदर्शन की प्रक्रिया मानव जीवन के शुरुआती वर्षों से ही प्रारंभ हो जाती है। इंसान को सबसे पहला मार्गदर्शन माता-पिता से मिलता है। बच्चा कुछ बड़ा होता है तो उसे गुरु का सान्निध्य प्राप्त होता है। गुणवान गुरु के मार्गदर्शन को कौन झुठला पाया है। गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वर: मंत्र में गुरु को ईश्वर समान माना गया है। एक योग्य मार्गदर्शक प्रार्थी पर अपने विचार थोपता नहीं है, उसके लिए निर्णय नहीं लेता, अपितु उसे निर्णय लेने के योग्य बनाता है।
मार्गदर्शन एक प्रगतिशील निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो एक व्यक्ति को जीवन लक्ष्य की ओर जाने में मदद करती है। बिना मार्गदर्शन के व्यक्ति एक कटी हुई पतंग जैसा लक्ष्यहीन हो जाता है। यह तो निश्चित है कि यदि ज्ञानी पुरुष एक भटके हुए व्यक्ति का हाथ पकड़ उचित मार्ग की ओर ले चले तो वह उसके समग्र उत्थान में योगदान कर सकता है। मार्गदर्शन सही अर्थों में एक सेवा है। ऐसी सेवा जो असीमित है। एक शिक्षक कितने ही छात्रों को शिक्षा देकर एवं प्रोत्साहित कर उनको आगे बढ़ने में मदद करता है। इस प्रक्रिया में मार्गदर्शक भी खाली हाथ नहीं रहता। ऐसा कर वह सच्चे आनंद एवं संतुष्टि का अनुभव कर समाज में आदर का पात्र बनता है। इससे उसकी स्वयं की क्षमता और सामाजिक उपयोगिता भी विकसित होती है।
हालांकि केवल प्राणी ही नहीं, बल्कि गीता, श्रीरामचरितमानस जैसे महान ग्रंथ, महापुरुषों की जीवनियों का पठन-पाठन भी आम लोगों के लिए प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत बनते आए हैं। प्रकृति भी हमें बहुत कुछ सिखाती है। माता-पिता, शिक्षक, धर्म ग्रंथ और प्रकृति की सीखों की जो लोग अवहेलना करते हैं उन्हें जीवन में बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है।
- छाया श्रीवास्तव