शक्ति स्वरूपा दुर्गा का एक रूप प्रेम का भी है प्रतीक
देवी दुर्गा को शक्ति स्वरूपा माना जाता है जो किसी हद तक विध्वंस का भी प्रतीक हैं परंतु क्या आप जानते हैं कि गौरी के रूप में वे प्रेम का भी प्रतीक हैं।
राजाआें की देवी
हिंदू परंपरा में मुख्य रूप से तीन देवियां हैं। एक हैं लक्ष्मी, दूसरी हैं सरस्वती और तीसरी देवी दुर्गा या शक्ति हैं। लक्ष्मी धन-धान्य या संपत्ति की देवी मानी जाती हैं। सरस्वती ज्ञान की देवी हैं, तो दुर्गा शक्ति की देवी मानी जाती हैं। दुर्ग शब्द से दुर्गा बना है। दुर्गा का मतलब है, जिसे जीता नहीं जा सकता। इसका मूल अर्थ है शक्ति। दुर्गा विशिष्ट देवी हैं। अब यहां सवाल उठता है कि शक्ति की पूजा क्यों होनी चाहिए? कुछ लोगों का मानना है कि राज-काज चलाने या राजनीति के लिए शक्ति की जरूरत पड़ती है। इस तरह राजाओं की देवी दुर्गा हैं।
दो रूप हैं माता के
दुर्गा के दो रूप हैं। एक, जो भयानक हैं। उनके बाल खुले होते हैं और वह रक्त पान करती हैं। दूसरा रूप है गौरी। गौरी माता का रूप हैं। वह प्यार करती हैं। दक्षिण भारत में गौरी मंदिरों की मूर्तियां देखें, तो उनके हाथ में त्रिशूल नहीं होता है। उनके हाथ में येसुदंड, यानी ईख होती है। येसुदंड कामदेव का चिह्नï है या प्रेम का चिह्न है। प्रेम और शक्ति में क्या संबंध होता है? कुछ लोगों का मानना होता है कि दुष्टों का नाश करने के लिए दुर्गा काली का रूप धारण करती हैं, लेकिन वह दुर्गा रूप में भी दुष्टों को नष्ट करती हैं। फिर कभी काली और कभी दुर्गा का वेष क्यों धारण करती हैं? दुर्गा और काली के रूप में फर्क क्यों है?
सुरक्षा के रूप में शक्ति देकर करते हैं प्रेम
देखा जाए, तो तीनों देवियों में एक बात सामान्य है। तीन देवियां प्रतीक स्वरूप हैं, जिन्हें व्यक्ति किसी को दे या किसी से ले सकता है। हम धन धान्य और संपत्ति किसी को दे सकते हैं या ले सकते हैं। ज्ञान भी हम दे सकते हैं या ले सकते हैं। लेकिन क्या हम शक्ति ले या दे सकते हैं? देखा जाए तो हम शक्ति भी दे सकते हैं और ले सकते हैं। यदि हम किसी व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करते हैं, तो इसका मतलब है कि हम शक्ति दे रहे हैं। जब हम किसी को शक्ति देते हैं, तो एक प्रकार से गौरी बन जाते हैं। शक्ति देना मतलब प्रेम प्रकट करना होता है। हम बच्चों को शक्ति देते हैं कि वे बहादुरी से जिंदगी का मुकाबला कर सकें। नौकरियों में अधिकारी अपने मातहत को शक्ति देता है। उस शक्ति से मातहत को सुरक्षा मिलती है। उसे डर नहीं लगता। शक्ति देकर हम डर कम करते हैं। डर कम करते हैं, तो प्रेम बढ़ता है।
भय से मिलती है शक्ति
यह सच है कि कभी-कभी हम काली रूप भी धारण करते हैं, यानी हम शक्ति ले लेते हैं। शक्ति लेने पर भय जागृत होता है और असुरक्षा पैदा होती है। वे घबरा जाते हैं और निराश हो जाते हैं। इसलिए शक्ति-पूजा करने का मतलब है कि हम खुद को शक्तिशाली महसूस करें। यदि किसी व्यक्ति से यह पूछा जाए कि पैसे क्यों चाहिए, तो जवाब मिलेगा कि हमें रोटी, कपड़ा और मकान के लिए पैसे चाहिए। उनके पास बहुत पैसे होने के बावजूद उनसे पूछा जाए, तो उनका जवाब होगा कि परिवार के लिए चाहिए। सच तो यह है कि लोग पैसे के आधार पर ही अपनी शक्ति मापते हैं। वास्तव में ऐसे लोग अंदर से कमजोर होते हैं। वे शक्ति पाने के लिए पैसों का उपार्जन करते हैं। ऐसे लोग लक्ष्मी के पीछे भागते रहते हैं। उन्हें मालूम नहीं होता है कि उन्हें लक्ष्मी नहीं, शक्ति चाहिए। वैसे, यदि देखा जाए, तो कुछ लोग बहुत पढ़ाई करते हैं और जाहिर करते हैं कि वे बहुत ज्ञानी हैं, लेकिन वे अपना ज्ञान बांटना नहीं चाहते हैंं। आप उनसे पूछें कि ज्ञान क्यों नहीं बांटते, तो आपको पता चलेगा वे ज्ञान बचा कर अपनी औकात बढ़ाना चाहते हैं। इस से उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। वास्तव में वे ज्ञान नहीं शक्ति चाहते हैं। वे शक्तिमान होना चाहते हैं।
लक्ष्मी, सरस्वती आैर शक्ति का अंतर
यह भी एक सच है कि लोग लक्ष्मी, सरस्वती और शक्ति में अंतर नहीं कर पाते हैं। यदि हमारे पास लक्ष्मी नहीं है, तो हम उन्हें दे नहीं सकते। क्योंकि यदि हम किसी दूसरे व्यक्ति को दे दें, तो वे हमारे पास से चली जाती हैं। यदि हमारे पास सरस्वती नहीं हैं, तो हम किसी को दे नहीं सकते। लेकिन यदि हमारे पास सरस्वती है और हम उसे किसी को देते हैं, तो भी हमारे पास से सरस्वती नहीं जाती। वह हमारे पास ही रहती हैं, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि ज्ञान बांटने से और बढ़ता है। यदि हम शक्ति की बात करें, तो हमें कोई दे या न दे, शक्ति हमारे पास रहती है। हमारे पास प्रचुर प्रेम रहता है। हम यह प्रेम किसी को दे सकते हैं या प्रेम न देकर किसी मेें भय पैदा कर सकते हैं। सच तो यह है कि हम गौरी या काली बन सकते हैं। हमारे पास असीमित शक्ति मौजूद होती है, लेकिन इसका एहसास सभी लोगों को नहीं होता है। उल्लेखनीय है कि शक्ति का एक नाम मां भी है। वह शक्ति स्रोत है। वह हमारी ऊर्जा की स्रोत है। उसकी ऊर्जा से ही हम रचे जाते हैं, लेकिन हम उसे महसूस नहीं कर पाते। हम लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में भी शक्ति तलाशते रहते हैं।
देवदत्त पटनायक