वाणी का समझें महत्व
वसंत पंचमी को मां सरस्वती के प्रकट होने का दिन माना जाता है। सरस्वती मनुष्य को ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती हैं। वे वाणी की देवी [वाग्देवी] हैं, जो संदेश देती हैं कि जो भी बोलें, सोच-समझकर। बता रहे हैं डॉ. अतुल टंडन..
वसंत पंचमी को मां सरस्वती के प्रकट होने का दिन माना जाता है। सरस्वती मनुष्य को ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाती हैं। वे वाणी की देवी [वाग्देवी] हैं, जो संदेश देती हैं कि जो भी बोलें, सोच-समझकर। बता रहे हैं डॉ. अतुल टंडन..
वाग्देवी सरस्वती वाणी, विद्या, ज्ञान-विज्ञान एवं कला-कौशल आदि की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। वे प्रतीक हैं मानव में निहित उस चैतन्य शक्ति की, जो उसे अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर अग्रसर करती है।
सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में सरस्वती के दो रूपों का दर्शन होता है- प्रथम वाग्देवी और द्वितीय सरस्वती। इन्हें बुद्धि [प्रज्ञा] से संपन्न, प्रेरणादायिनी एवं प्रतिभा को तेज करने वाली शक्ति बताया गया है। ऋग्वेद संहिता के सूक्त संख्या 8/100 में वाग्देवी की महिमा का वर्णन किया गया है। ऋग्वेद संहिता के दशम मंडल का 125वां सूक्त पूर्णतया वाक् [वाणी] को समर्पित है। इस सूक्त की आठ ऋचाओं के माध्यम से स्वयं वाक्शक्ति [वाग्देवी] अपनी सामर्थ्य, प्रभाव, सर्वव्यापकता और महत्ता का उद्घोष करती हैं।
वाणी का महत्व : बृहदारण्यक उपनिषद् में राजा जनक महर्षि याज्ञवल्क्य से पूछते हैं- जब सूर्य अस्त हो जाता है, चंद्रमा की चांदनी भी नहीं रहती और आग भी बुझ जाती है, उस समय मनुष्य को प्रकाश देने वाली कौन-सी वस्तु है? ऋषि ने उत्तर दिया- वह वाक् [वाणी] है। तब वाक् ही मानव को प्रकाश देता है। मानव के लिए परम उपयोगी मार्ग दिखाने वाली शक्ति वाक् [वाणी] की अधिष्ठात्री हैं भगवती सरस्वती। छांदोग्य उपनिषद् [7-2-1] के अनुसार, यदि वाणी का अस्तित्व न होता तो अच्छाई-बुराई का ज्ञान नहीं हो पाता, सच-झूठ का पता न चलता, सहृदय और निष्ठुर में भेद नहीं हो पाता। अत: वाक् [वाणी] की उपासना करो।
ज्ञान का एकमात्र अधिष्ठान वाक् है। प्राचीनकाल में वेदादि समस्त शास्त्र कंठस्थ किए जाते रहे हैं। आचार्यो द्वारा शिष्यों को शास्त्रों का ज्ञान उनकी वाणी के माध्यम से ही मिलता है। शिष्यों को गुरु-मंत्र उनकी वाणी से ही मिलता है। वाग्देवी सरस्वती की आराधना की प्रासंगिकता आधुनिक युग में भी है। मोबाइल द्वारा वाणी [ध्वनि] का संप्रेषण एक स्थान से दूसरे स्थान होता है। ये ध्वनि-तरंगें नाद-ब्रह्म का ही रूप हैं।
वसंतपंचमी है वागीश्वरी जयंती : जीभ सिर्फ रसास्वादन का माध्यम ही नहीं, बल्कि वाग्देवी का सिंहासन भी है। देवी भागवत के अनुसार, वाणी की अधिष्ठात्री सरस्वती देवी का आविर्भाव श्रीकृष्ण की जिह्वा के अग्रभाग से हुआ था। परमेश्वर की जिह्वा से प्रकट हुई वाग्देवी सरस्वती कहलाई। अर्थात वैदिक काल की वाग्देवी कालांतर में सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हो गई। ग्रंथों में माघ शुक्ला पंचमी [वसंत पंचमी] को वाग्देवी के प्रकट होने की तिथि माना गया है। इसी कारण वसंत पंचमी के दिन वागीश्वरी जयंती मनाई जाती है, जो सरस्वती-पूजा के नाम से प्रचलित है।
वाणी की महत्ता पहचानो : वाग्देवी की आराधना में छिपा आध्यात्मिक संदेश है कि आप जो भी बोलिए, सोच-समझ कर बोलिए। हम मधुर वाणी से शत्रु को भी मित्र बना लेते हैं, जबकि कटुवाणी अपनों को भी पराया बना देती है। वाणी का बाण जिह्वा की कमान से निकल गया, तो फिर वापस नहीं आता। इसलिए वाणी का संयम और सदुपयोग ही वाग्देवी को प्रसन्न करने का मूलमंत्र है। जब व्यक्ति मौन होता है, तब वाग्देवी अंतरात्मा की आवाज बनकर सत्प्रेरणा देती हैं।
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