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    ज्ञानी कौन: ज्ञान इंद्रियां परमात्मा की सत्ता और गुणों का ज्ञान अर्जन करने में सहायक हैं

    By Bhupendra SinghEdited By:
    Updated: Tue, 13 Jul 2021 04:17 AM (IST)

    मानव जीवन के दुर्लभ अवसर को अज्ञान में गंवा देना परमात्मा से द्रोह है। जीवन पथ को प्रकाशित करने के लिए ज्ञान का प्रकाश चाहिए। यह ज्ञान इंद्रियों के सदुपयोग से ही संभव है। तभी जीवन की सार्थकता भी संभव है।

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    परमात्मा ने मनुष्य को दस इंद्रियां उपहार में दी हैं।

    परमात्मा ने मनुष्य को दस इंद्रियां उपहार में दी हैं। इनके माध्यम से वह सृष्टि से संपर्क स्थापित करने योग्य होता है। इनमें पांच ज्ञान इंद्रियां हैं और पांच कर्म इंद्रियां। पांच ज्ञान इंद्रियों में कर्ण, नेत्र, त्वचा, जिह्वा और नासिका हैं। सुनकर, देखकर, स्पर्श द्वारा, स्वाद और सुगंध द्वारा ही किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान अथवा अवस्था का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ज्ञान इंद्रियां परमात्मा की सत्ता और गुणों का ज्ञान अर्जन करने में सहायक हैं। ये मनुष्य को परमात्मा से जोड़ती भी हैं।

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    माया के प्रभाव में मनुष्य इंद्रियों के वास्तविक उद्देश्य को उपेक्षित कर देता है। जिन इंद्रियों से उसे परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कर उसकी आराधना करनी थी उन्हें वह संसार के रस-रंग में लगा देता है। इंद्रियां जब वासनाओं के नियंत्रण में चली जाती हैं, तब परमात्मा विस्मृत हो जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार आगे आ जाते हैं। जो नाशवान संसार है, उससे मोह हो जाता है। जो परमात्मा ने दिया है, उसे अपना मान अहंकार हो जाता है। मृत्यु जो जीवन मिलने के पहले ही सुनिश्चित हो गई है, उसे भूल मनुष्य सदियों की योजनाओं में व्यस्त हो जाता है। सुख जो परमात्मा से मिलना है, आनंद जो परमात्मा की भक्ति में है, उसे सांसारिक पदार्थों और सांसारिक संबंधों के घने मेघ ढक लेते हैं। माया के छलावे में वह उसे सुख समझ लेता है, जो अंतत: दुख देने वाला है। इस तरह मनुष्य ज्ञान इंद्रियों के दुरुपयोग का अपराधी बनता है।

    परमात्मा के गुणों और सामर्थ्य का ज्ञान ही मनुष्य को जीवन और संसार का सच जानने योग्य बनता है। यह सच जाने बिना जीवन तो व्यतीत हो जाएगा, किंतु एक अंधकारमय सुरंग की भ्रमित यात्रा की तरह। मानव जीवन के दुर्लभ अवसर को अज्ञान में गंवा देना परमात्मा से द्रोह है। जीवन पथ को प्रकाशित करने के लिए ज्ञान का प्रकाश चाहिए। यह ज्ञान इंद्रियों के सदुपयोग से ही संभव है। तभी जीवन की सार्थकता भी संभव है।

    -डॉ. सत्येंद्र पाल सिंह