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    Geeta Updesh: गीता के इन श्लोक से मिलेगा जीवन जीने का सार, जानें इनका सही अर्थ

    By Vaishnavi DwivediEdited By: Vaishnavi Dwivedi
    Updated: Fri, 03 Nov 2023 02:48 PM (IST)

    Geeta Updesh श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान तब दिया था जब उन्होंने अपने सभी शस्त्र त्याग दिए थे और हार मान ली थी। साथ ही उन्होंने अपने भाइयों ...और पढ़ें

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    Geeta Updesh: गीता के इन श्लोक से मिलेगा जीवन जीने का सार

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Geeta Updesh: भगवान कृष्ण श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। उन्होंने पृथ्वी पर अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए अवतार लिया था। भगवान कृष्ण से जुड़ी कहानियों में गीता का ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। गीता में संसार की हर बातों का जवाब मिलता है, ऐसे में हर किसी को अपने बुरे और अच्छे दौर में गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए।

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    जिन्हें पता नहीं उनको बता दें, कि पालनहार श्री कृष्ण ने हैं अर्जुन को गीता का ज्ञान तब दिया था, जब उन्होंने अपने सभी शस्त्र त्याग दिए थे और हार मान ली थी। साथ ही उन्होंने अपने भाइयों और रिश्तेदारों के खिलाफ नहीं लड़ने का फैसला किया था। इस दौरान ही भगवान कृष्ण ने अर्जुन को अपना दिव्य रूप दिखाया था और उन्हें गीता का उपदेश दिया था ।

    गीता का ज्ञान

    ''यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

    अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।''

    इस श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं कि 'जब-जब धर्म की हानि होगी, जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब मैं बार-बार पृथ्वी पर आऊंगा, पृथ्वी से बुरी शक्तियों को हटाने के लिए और धर्म की रक्षा करने के लिए, मैं पृथ्वी पर अवतरित होता रहूंगा। हर युग में धर्म को अधर्म से बचाने और लोगों की रक्षा करने और फिर से धर्म की स्थापना करने के लिए।'

    ''कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

    मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ''...!!

    'हमें अपना कर्तव्य निभाने का अधिकार है, लेकिन परिणाम केवल हमारे प्रयासों पर निर्भर नहीं हैं। परिणाम निर्धारित करने में कई कारक भूमिका निभाते हैं जैसे हमारे प्रयास, भाग्य, भगवान की इच्छा, दूसरों के प्रयास, शामिल लोगों के संचयी कर्म, स्थान और स्थिति, आदि।'

    इस श्लोक में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को समझाया है कि 'वो परिणामों की चिंता छोड़ दें और केवल अच्छा काम करने पर ध्यान केंद्रित करें। सच तो यह है कि जब हम परिणामों के बारे में चिंतित नहीं होते हैं, तो हम पूरी तरह से अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित कर पाते हैं और परिणाम पहले से भी बेहतर होता है।'

    ''रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः।

    प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु!!''

    श्री कृष्ण ने इस श्लोक में अर्जुन को समझाया है कि 'वो ऊर्जा के सभी स्रोत में मौजूद हैं। हे कुंती के पुत्र, सूर्य और चंद्रमा मुझसे ही तेज प्राप्त करते हैं। मैं वैदिक मंत्रों में पवित्र शब्दांश ओम हूं; मैं आकाश में ध्वनि हूं। यहां तक ​​कि मनुष्यों में प्रकट होने वाली सभी क्षमताओं के लिए भी, मैं परम ऊर्जा स्रोत हूं।'

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    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'