Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Geeta ka Gyan: भगवान श्री कृष्ण ने इन गुणों को बताया है श्रेष्ठ योगी की पहचान

    By Shantanoo MishraEdited By:
    Updated: Fri, 25 Nov 2022 04:08 PM (IST)

    Geeta Gyan हिन्दू धर्म में श्रीमद्भागवत गीता को ज्ञान का भंडार कहा जाता है। इसमें भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश को सरल जीवन के लिए बहुत ही उपयो ...और पढ़ें

    Hero Image
    Geeta Ka Gyan: भगवत गीता में बताया गया है कि किसे कहा जाता है श्रेष्ठ योगी।

    नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Geeta ka Gyan: सनातन धर्म में धार्मिक वेद-पुराणों का विशेष महत्व है। इन सबमें भी श्रीमद्भागवत गीता को भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश के रूप में पढ़ा और सुना जाता है। जिस वजह से इस धर्मग्रन्थ का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। बता दें कि जब धनुर्धर अर्जुन महाभारत के युद्धभूमि में दुविधा की स्थिति में थे, तब उनके पार्थ यानि श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया था। तब से लेकर अबतक गीता को सबसे पूजनीय वेद-ग्रंथों में गिना जाता है। इसके साथ गीता का पाठन इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसमें जीवन में उत्पन्न होने वाली सभी दुविधाओं के विषय में श्री कृष्ण ने श्लोक के माध्यम से समाधान बताया है। गीता ज्ञान के इस भाग में आइए जानते हैं कि योगी व्यक्ति की पहचान क्या होती है और क्यों इनके दर्शन होना अत्यंत दुर्लभ होता है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भगवत गीता के अनुसार यह गुण हैं इ श्रेष्ठ योगी की पहचान

    प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः।

    अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम्।।

    भगवत गीता के इस श्लोक में श्री कृष्ण बता रहे हैं कि जब एक योगी सभी कलंकों से मुक्त होकर और सच्ची निष्ठा से आगे बढ़ने का प्रयास करता है, और जो अनेकों जन्मों से सिद्ध है। वही योगी परमगति अर्थात मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।

    बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।

    वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।

    श्लोक के माध्यम से श्री कृष्ण बता रहे हैं कि अनेकों-अनेक जन्मों के बाद यानि मनुष्य रूप में जिसे वास्तव में ज्ञान होता है। जिसे यह ज्ञान है कि मैं सभी कारणों का कारण हूं। वही ज्ञानी व्यक्ति, मेरे यानि वासुदेव के शरण में आता है और ऐसा योगी व्यक्ति अत्यंत दुर्लभ होता है।

    योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।

    श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः।।

    भगवत गीता के इस श्लोक में श्री कृष्ण बता रहे हैं कि सभी योगियों में से जो भी श्रद्धावान योगी एकत्व भाव से मेरी आराधना करता है। वही सबसे सर्वश्रेष्ठ योगी है।

    सुहृन्मित्रा र्युदासीन मध्यस्थ द्वेष्य बन्धुषु।

    साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धि र्विशिष्यते।।

    इस श्लोक में योगिराज श्री कृष्ण बता रहे हैं कि जब मनुष्य अपने हितैषियों को, प्रिय मित्रों को, मध्यस्तों को ईर्षालुओं को, शत्रुओं को, पुण्यात्मा और पापियों को एक ही भाव से देखता है। वही योगी सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति कहलाता है।

    डिसक्लेमर- इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।