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    Gautam Buddha: क्या है गौतम बुद्ध की विभिन्न मुद्राएं का मतलब, जानिए इनका महत्व

    By Suman SainiEdited By: Suman Saini
    Updated: Wed, 31 May 2023 10:59 AM (IST)

    गौतम बुद्ध के कई ऐसे अनमोल विचार हैं जिन्हें अपपाने से व्यक्ति अपने जीवन में समस्याओं के होते हुए भी सुखी रह सकता है। उनके विचारों के साथ उनकी विभिन्न मुद्राएं भी विशेष महत्व रखती हैं। आइए जानतें हैं ऐसी ही कुछ मुद्राओं के बारे में...

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    Gautam Buddha गौतम बुद्ध की विभिन्न मुद्राएं का अर्थ और महत्व

    नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Gautam Buddha: गौतम बुद्ध का न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में एक विशेष स्थान हैं। वह बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में राजपाठ त्याग दिया था और वन में साधना के लिए चले गए थे। महात्मा बुद्ध ने अहिंसा और करूणा का रास्ता अपनाया और लोगों को भी यही शिक्षा दी। 

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    क्या है ध्यान मुद्रा का अर्थ

    ध्यान मुद्रा को समाधि मुद्रा या योग मुद्रा भी कहा जाता है। इस मुद्रा में गौतम बुद्ध के दोनों हाथ उनकी गोद में रखे हैं, और दाएं बाथ को बाएं हाथ के ऊपर उंगलियों को फैला कर रखा है। यह मुद्रा अच्छे कानून और संघ की एकाग्रता की ओर इशारा करती है।

    वितर्क मुद्रा क्या बताती है

    वितर्क मुद्रा में अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मिलाया जाता है। अन्य उंगलियां सीधी रहती हैं। यह मुद्रा बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार का प्रतीक है। साथ ही यह मुद्रा आध्यात्मिक ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है।

    क्या है अभय मुद्रा का अर्थ

    इस मुद्रा में दायें हाथ को कंधे तक उठा कर, बांह को मोड़कर किया जाता है और अंगुलियों को ऊपर की ओर उठाकर हथेली को बाहर की ओर रखा जाता है। यह मुद्रा निर्भयता की ओर इशार करती है। साथ ही यह सुरक्षा, शांति, परोपकार और भय को दूर करने का प्रतिनिधित्व भी करती है।

    यह मुद्रा किस बात की ओर करती है सकेंत

    अंजलि मुद्रा को नमस्कार मु्द्रा भी कहा जाता है। क्योंकि यह लगभग नमस्कार मुद्रा की ही तरह प्रतीत होती है। इसमें हथेलियां ऊपर की ओर, दोनों हाथों की उंगलियां आपस में जुड़ी हुई और अंगूठे एक-दूसरे के अग्रभाग को छूती हुई अवस्था में होते हैं। यह मुद्रा अभिवादन, प्रार्थना और आराधना के इशारे का प्रतिनिधित्व करती है।

    किसे कहते हैं ज्ञान मुद्रा

    ज्ञान मु्द्रा में अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मिलाकर बाकी उंगलियों को सीधा रखा जाता है। यह लगभग अभय मुद्रा की तरह है लेकिन इस मुद्रा में अंगूठा तर्जनी उंगली को छूता है। यह मुद्रा भी गौतम बुद्ध की शुक्षाओं का प्रतीक है।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

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