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    Gangaur Puja 2024: गणगौर पूजा पर करें जरूर इस चालीसा का पाठ और आरती, घर आएगी सुख-समृद्धि

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Thu, 11 Apr 2024 08:00 AM (IST)

    यह पर्व हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवों के देव महादेव और जगत जननी मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। विवाहित स्त्रियां सुख और सौभाग्य में वृद्धि एवं पति की लंबी उम्र हेतु गणगौर व्रत करती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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    Gangaur Puja 2024: गणगौर पूजा पर करें जरूर इस चालीसा का पाठ और आरती, घर आएगी सुख-समृद्धि

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। Gangaur Puja 2024: गणगौर पूजा देशभर में चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन धूमधाम से मनाई जा रही है। यह पर्व हर वर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवों के देव महादेव और जगत जननी मां पार्वती की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। विवाहित स्त्रियां सुख और सौभाग्य में वृद्धि एवं पति की लंबी उम्र हेतु गणगौर व्रत करती हैं। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। अतः व्रती श्रद्धा भाव से चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन शिव परिवार की पूजा करती हैं। अगर आप भी महादेव की कृपा के भागी बनना चाहते हैं, तो पूजा के समय शिव चालीसा का पाठ एवं आरती अवश्य करें।

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    शिव चालीसा पाठ (Shiv Chalisa Path)

    ।।दोहा।।

    श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

    कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

    जय गिरिजा पति दीन दयाला।

    सदा करत संतन प्रतिपाला॥

    भाल चंद्रमा सोहत नीके।

    कानन कुंडल नागफनी के॥

    अंग गौर शिर गंग बहाये।

    मुंडमाल तन छार लगाये॥

    वस्त्र खाल बाघंबर सोहे।

    छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

    मैना मातु की ह्वै दुलारी।

    बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥

    कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

    करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

    नंदि गणेश सोहै तहं कैसे।

    सागर मध्य कमल हैं जैसे॥

    कार्तिक श्याम और गणराऊ।

    या छवि को कहि जात न काऊ॥

    देवन जबहीं जाय पुकारा।

    तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥

    किया उपद्रव तारक भारी।

    देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

    तुरत षडानन आप पठायउ।

    लवनिमेष महं मारि गिरायउ॥

    आप जलंधर असुर संहारा।

    सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

    त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

    सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥

    किया तपहिं भागीरथ भारी।

    पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

    दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

    सेवक स्तुति करत सदाहीं॥

    वेद नाम महिमा तव गाई।

    अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

    प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

    जरे सुरासुर भये विहाला॥

    कीन्ह दया तहं करी सहाई।

    नीलकंठ तब नाम कहाई॥

    पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।

    जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥

    सहस कमल में हो रहे धारी।

    कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

    एक कमल प्रभु राखेउ जोई।

    कमल नयन पूजन चहं सोई॥

    कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

    भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

    जय जय जय अनंत अविनाशी।

    करत कृपा सब के घटवासी॥

    दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।

    भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

    त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।

    यहि अवसर मोहि आन उबारो॥

    लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

    संकट से मोहि आन उबारो॥

    मातु पिता भ्राता सब कोई।

    संकट में पूछत नहिं कोई॥

    स्वामी एक है आस तुम्हारी।

    आय हरहु अब संकट भारी॥

    धन निर्धन को देत सदाहीं।

    जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥

    अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।

    क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

    शंकर हो संकट के नाशन।

    मंगल कारण विघ्न विनाशन॥

    योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।

    नारद शारद शीश नवावैं॥

    नमो नमो जय नमो शिवाय।

    सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥

    जो यह पाठ करे मन लाई।

    ता पार होत है शंभु सहाई॥

    ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।

    पाठ करे सो पावन हारी॥

    पुत्र हीन कर इच्छा कोई।

    निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

    पंडित त्रयोदशी को लावे।

    ध्यान पूर्वक होम करावे ॥

    त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।

    तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

    धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।

    शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥

    जन्म जन्म के पाप नसावे।

    अन्तवास शिवपुर में पावे॥

    कहे अयोध्या आस तुम्हारी।

    जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

    ॥दोहा॥

    नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।

    तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥

    मगसर छठि हेमंत ॠतु, संवत चौसठ जान।

    अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

    शिवजी की आरती (Mata Parvati Aarti Lyrics)

    जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

    ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥

    एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

    हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥

    दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

    त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥

    अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

    चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥

    श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

    सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥

    कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

    जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥

    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

    प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥

    काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

    नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥

    त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।

    कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥

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