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    Ganga Dussehra पर करें इस शक्तिशाली स्तोत्र का पाठ, सभी संकटों से मिलेगी निजात

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Tue, 03 Jun 2025 09:00 PM (IST)

    हर साल निर्जला एकादशी के एक दिन पहले गंगा दशहरा (Ganga Dussehra 2025) मनाया जाता है। इस साल 05 जून को गंगा दशहरा मनाया जाएगा। गंगा दशहरा के दिन बड़ी संख्या में लोग गंगा समेत पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। साथ ही पूजा के बाद दान-पुण्य करते हैं।

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    Ganga Dussehra 2025: गंगा दशहरा का धार्मिक महत्व

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। वैदिक पंचांग के अनुसार, गुरुवार 05 जून के दिन गंगा दशहरा मनाया जाएगा। यह दिन देवी मां गंगा को समर्पित होता है। इस शुभ अवसर पर श्रद्धालु गंगा स्नान कर देवी मां गंगा और देवों के देव महादेव की पूजा करते हैं। इसके साथ ही गंगा दशहरा के दिन पितरों का तर्पण एवं पिंडदान भी किया जाता है। ऐसा करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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    ज्योतिषियों की मानें तो गंगा दशहरा के दिन कई मंगलकारी योग बन रहे हैं। इन योग में स्नान-दान करने से साधक को अक्षय फल मिलेगा। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होगी। अगर आप भी जीवन में व्याप्त संकटों से निजात पाना चाहते हैं, तो गंगा दशहरा के दिन भक्ति भाव से देवी मां गंगा और महादेव की पूजा करें। वहीं, पूजा के समय इस स्तोत्र का पाठ करें।

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    दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र

    विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय ।

    कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।

    गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भक्तप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।

    ज्योतिर्मयाय गुणनामसुकृत्यकाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    चर्मांबराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।

    मंजीरपादयुगलाय जटाधराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय ।

    आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीविलासभवनाय महेश्वराय पञ्चाननाय शरणागतकल्पकाय ।

    शर्वाय सर्वजगतामधिपाय तस्मै दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।

    नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    रामप्रियाय राघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।

    पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।

    मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय दारिद्‌र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    वसिष्ठेनकृतं स्तोत्रं सर्व दारिद्‌र्यनाशनम् ।

    सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ॥

    दुख नाशक शिव स्तोत्र

    विश्वेश्वराय नरकार्णव तारणाय

    कणामृताय शशिशेखरधारणाय ।

    कर्पूरकान्तिधवलाय जटाधराय

    दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय

    कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय ।

    गंगाधराय गजराजविमर्दनाय

    दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय

    उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय ।

    ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय

    दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    चर्मम्बराय शवभस्मविलेपनाय

    भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय ।

    मंझीरपादयुगलाय जटाधराय

    दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय

    हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय ।

    आनन्दभूमिवरदाय तमोमयाय

    दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    भानुप्रियाय भवसागरतारणाय

    कालान्तकाय कमलासनपूजिताय ।

    नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय

    दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय

    नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय ।

    पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय

    दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय

    गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय ।

    मातङ्गचर्मवसनाय महेश्वराय

    दारिद्र्य दुःखदहनाय नमः शिवाय ॥

    वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणं ।

    सर्वसंपत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम् ।

    त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात् ॥

    दुख नाशक स्तुति

    जय देव जगन्नाथ, जय शंकर शाश्वत।

    जय सर्व-सुराध्यक्ष, जय सर्व-सुरार्चित ! ।।

    जय सर्व-गुणातीत, जय सर्व-वर-प्रद !

    जय नित्य-निराधार, जय विश्वम्भराव्यय ! ।।

    जय विश्वैक-वेद्येश, जय नागेन्द्र-भूषण !

    जय गौरी पते शम्भो, जय चन्द्रार्ध-शेखर ! ।।

    जय कोट्यर्क-संकाश, जयानन्त-गुणाश्रय !

    जय रुद्र-विरुपाक्ष, जय चिन्त्य-निरञ्जन ! ।।

    जय नाथ कृपा-सिन्धो, जय भक्तार्त्ति-भञ्जन !

    जय दुस्तर-संसार-सागरोत्तारण-प्रभो ! ।।

    प्रसीद मे महा-भाग, संसारार्त्तस्य खिद्यतः।

    सर्व-पाप-भयं हृत्वा, रक्ष मां परमेश्वर ! ।।

    महा-दारिद्रय-मग्नस्य, महा-पाप-हृतस्य च।

    महा-शोक-विनष्टस्य, महा-रोगातुरस्य च।।

    ऋणभार-परीत्तस्य, दह्यमानस्य कर्मभिः।

    ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य, प्रसीद मम शंकर ! ।।

    दारिद्रयः प्रार्थयेदेवं, पूजान्ते गिरिजा-पतिम्।

    अर्थाढ्यो वापि राजा वा, प्रार्थयेद् देवमीश्वरम्।।

    दीर्घमायुः सदाऽऽरोग्यं, कोष-वृद्धिर्बलोन्नतिः।

    ममास्तु नित्यमानन्दः, प्रसादात् तव शंकर ! ।।

    शत्रवः संक्षयं यान्तु, प्रसीदन्तु मम गुहाः।

    नश्यन्तु दस्यवः राष्ट्रे, जनाः सन्तुं निरापदाः।।

    दुर्भिक्षमरि-सन्तापाः, शमं यान्तु मही-तले।

    सर्व-शस्य समृद्धिनां, भूयात् सुख-मया दिशः।।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।