Ganga Dussehra 2023: पाना चाहते हैं सुख और समृद्धि, तो आज पूजा के समय जरूर करें ये स्तुति
Ganga Dussehra 2023 धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में नहाने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके लिए साधक गंगा दशहरा के दिन गंगाजल युक्त पानी से स्नान करते हैं।
नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Ganga Dussehra 2023: आज गंगा दशहरा है। यह पर्व हर साल ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। साथ ही श्रद्धा भाव से मां गंगा की पूजा-उपासना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में नहाने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं। साथ ही व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके लिए साधक गंगा दशहरा के दिन गंगाजल युक्त पानी से स्नान करते हैं। इसके पश्चात, विधिवत मां गंगा की पूजा-उपासना करते हैं। अगर आप भी सुख और समृद्धि पाना चाहते हैं, तो गंगा दशहरा के दिन पूजा के समय ये स्तुति जरूर करें-
॥ श्री गंगा स्तोत्र ॥
देवि सुरेश्वरि भगवति गङ्गे त्रिभुवनतारिणि तरलतरङ्गे ।
शङ्करमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ॥1॥
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥2॥
हरिपदपाद्यतरङ्गिणि गङ्गे हिमविधुमुक्ताधवलतरङ्गे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥3॥
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गङ्गे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥4॥
पतितोद्धारिणि जाह्नवि गङ्गे खण्डितगिरिवरमण्डितभङ्गे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ॥5॥
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गङ्गे विमुखयुवतिकृततरलापाङ्गे ॥6॥
तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोऽपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गङ्गे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुङ्गे ॥7॥
पुनरसदङ्गे पुण्यतरङ्गे जय जय जाह्नवि करुणापाङ्गे ।
इन्द्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥8॥
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥9॥
अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुण्ठे तस्य निवासः ॥10॥
वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥11॥
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गङ्गास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥12॥
येषां हृदये गङ्गाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकान्तापज्झटिकाभिः परमानन्दकलितललिताभिः ॥13॥
गङ्गास्तोत्रमिदं भवसारं वाञ्छितफलदं विमलं सारम् ।
शङ्करसेवकशङ्कररचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्तः ॥14॥
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