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Ganesh Chaturthi Vrat Katha: गणेश चतुर्थी पर आज जरूर सुनें ये व्रत कथा, सभी मनोरथ होंगे पूरे

Ganesh Chaturthi Vrat Katha हिन्दू धर्म में गणेश चतुर्थी के व्रत और पूजन का खास महत्व है। मान्यता है कि गणेश चतुर्थी की कथा सुनने या पढ़ने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होता हैं।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Fri, 28 May 2021 02:08 PM (IST)Updated: Sat, 29 May 2021 05:42 AM (IST)
Ganesh Chaturthi Vrat Katha: गणेश चतुर्थी पर आज जरूर सुनें ये व्रत कथा, सभी मनोरथ होंगे पूरे
Ganesh Chaturthi Vrat Katha: गणेश चतुर्थी के दिन जरूर सुने ये व्रत कथा, सभी मनोरथ होंगे पूरे

Ganesh Chaturthi Vrat Katha: हिन्दू धर्म में गणेश चतुर्थी के व्रत और पूजन का खास महत्व है। चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश का विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना करने से सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। पंचांग के अनुसार, हर माह दो चतुर्थी पड़ती हैं- पहली शुक्ल पक्ष चतुर्थी और दूसरी कृष्ण पक्ष चतुर्थी, शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन कर व्रत कथा सुनना और पढ़ना बहुत लाभकारी होता है। मान्यता है कि गणेश चतुर्थी की कथा सुनने या पढ़ने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होता हैं।

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गणेश चतुर्थी व्रत कथा

गणेश चतुर्थी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय भगवान शिव और मां पार्वती नर्मदा नदी के तट पर विराजमान थे। वहां मां पार्वती ने भगवान शिव से चौपड़ खेलने का अनुरोध किया, उस वक्त शिवजी ने मां पार्वती से सवाल किया कि हमारी हार-जीत का फैसला कौन करेगा? सवाल सुनकर मां पार्वती ने वहां पड़े कुछ घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए और उससे कहा- पूत्र! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, लेकिन यहां हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है, इसलिए तुम हमारे खेल के साक्षी बनों और आखिरी में तुम ही हमें बताना कि कौन जीता, कौन हारा?

भगवान भोले शंकर और मां पार्वती ने चौपड़ का खेल शुरू किया। तीनों बार खेल में मां पार्वती ही जीतीं, लेकिन जब आखिरी में उस घास के बालक से हार जीत के बारे में पूछा गया, तो उसने महादेव को विजयी बताया। ये बात सुनकर मां पार्वती क्रोधित हो गईं और उस बालक को एक पैर से लंगड़ा होने और वहीं नदी किनारे कीचड़ में पड़े रहकर दुख भोगने का शाप दे दिया।

मां को क्रोधित देख बालक ने तुरंत ही अपनी भूल की क्षमा मांगी और कहा कि मुझसे अज्ञानवश ऐसा हो गया। कृपया मुझे माफ करें और मुक्ति का मार्ग बताएं। तब मां पार्वती ने उस बालक को माफ करते हुए बोलीं कि यहां नाग-कन्याएं गणेश-पूजन के लिए आएंगी। उनके उपदेश सुनकर तुम गणेश व्रत करके मुझे प्राप्त कर सकोगे। इतना कहकर मां पार्वती कैलाश पर्वत चली गईं।

एक साल बाद वहां श्रावण मास में नाग-कन्याएं गणेश पूजन के लिए आईं। उन्होंने गणेशजी का व्रत कर उस बालक को भी व्रत की विधि बताई, जिसके बाद बालक ने 12 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। व्रत से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन दिए और बालक को उसकी इच्छा के अनुसार वर दिया कि वो स्वंय चलकर कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता के पास पहुंच सके। गणेशजी से वरदान मिलने के बाद बालक ने कैलाश पहुंचकर अपने माता पिता के दर्शन किए।

इसके बाद शिवजी ने भी 21 दिन का व्रत किया, जिसके असर से माता पार्वती के मन में भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वो दूर हो गई।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'


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