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    प्रथम- देवी शैलपुत्री श्लोक

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    Updated: Wed, 10 Apr 2013 03:27 PM (IST)

    मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में यह सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र के दौरान प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है।

    मां दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैल पुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में यह सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं। नवरात्र के दौरान प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है। ध्यान

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    वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।

    वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्रीयशस्विनीम्घ्

    पूणेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।

    पटांबरपरिधानांरत्‍‌नकिरीटांनानालंकारभूषिताघ्

    प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।

    कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्घ् स्तोत्र

    प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम।

    धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम

    त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम।

    सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ्

    चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।

    भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ्

    चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।

    भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहमघ् कवच

    ओमकार में शिरपातुमूलाधार निवासिनी।

    हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरीघ्

    श्रीकाररूपातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी।

    हूंकाररूपातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृतघ्

    फट्काररूपातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा। पहले स्वरूप में मां पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में विराजमान हैं। नंदी नामक वृषभ पर सवार शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। इन्हें समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक माना जाता है। दुर्गम स्थलों पर स्थित बस्तियों में सबसे पहले शैलपुत्री के मंदिर की स्थापना इसीलिए की जाती है कि वह स्थान सुरक्षित रह सके। उपासना मंत्र

    वन्दे वांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्।

    वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।

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