Falgun Amavasya 2025: अमावस्या पर जरूर करें पितृ सूक्त का पाठ, दूर होगी पितरों की नाराजगी
फाल्गुन अमावस्या (Falgun Amavasya 2025 Upay) गुरुवार 27 फरवरी 2025 को मनाई जा रही है। इस तिथि पर पवित्र नदी में स्नान करना और गरीबों में दान आदि करना बहुत ही पुण्यकारी माना गया है। ऐसा करने से जातक को कई कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। यह तिथि भगवान शिव के साथ-साथ पितरों के लिए भी समर्पित मानी गई है।
धर्म डेस्क, नई दिल्ली। अमावस्या तिथि हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण तिथि मानी गई है। माना जाता है कि इस तिथि पर तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। इस तिथि को पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए भी उत्तम माना गया है। ऐसे में आप फाल्गुन अमावस्या पर पितृ सूक्तम् पाठ कर पितरों की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
पितृ सूक्तम् पाठ (Pitra Sukta Path)
उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥
अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥
ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।
तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥
त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।
तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥
त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।
वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥
त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।
तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥
आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥
उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
पितृ दोष के कारण व्यक्ति को तरह-तरह के कष्ट झेलने पड़ते हैं। ऐसे में अमावस्या के लिए किए गए कुछ कार्य आपको इससे छुटकारा दिला सकते हैं। इसके लिए आप अमावस्या पर पितृ सूक्त का पाठ कर सकते हैं।
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आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।
अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥
अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।
अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥
येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।
तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥
अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।
ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥
आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।
मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥
आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।
पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥
फाल्गुन अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, श्राद्ध कर्म आदि जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं और साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
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