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    Eid-ul-Adha 2023: भारत में कब मनाई जाएगी बकरीद? जानें-इतिहास और धार्मिक महत्व

    By Pravin KumarEdited By: Pravin Kumar
    Updated: Mon, 26 Jun 2023 10:46 AM (IST)

    Eid-ul-Adha 2023 इस्लामिक कैलेंडर का यह अंतिम महीना होता है। इसके बाद नव वर्ष की शुरुआत होती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इसमें एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों एवं जरूरतमंदों को दिया जाता है। तीसरा और अंतिम हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है। देश और दुनिया में बकरीद पर्व पर उत्सव जैसा माहौल रहता है।

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    Eid-ul-Adha 2023: भारत में कब मनाई जाएगी बकरीद? जानें-इतिहास और धार्मिक महत्व

    नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Eid-ul-Adha 2023: इस्लाम धर्म में बकरीद पर्व का विशेष महत्व है। इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने जुल-हिज्जा के दसवें दिन बकरीद मनाई जाती है। इस प्रकार साल 2023 में 29 जून को बकरीद है। इस वर्ष 19 जून को देश के कुछ हिस्सों में चांद का दीदार हुआ है। अतः चांद के दीदार के दसवें दिन यानी 29 जून को बकरीद मनाई जाएगी। बकरीद को ईद-उल-अजहा भी कहा जाता है। ईद-उल-अजहा का अर्थ कुर्बानी वाली ईद है। इस्लाम धर्म में बकरीद दूसरा बड़ा त्यौहार है। धर्म जानकारों की मानें तो रमजान महीने के खत्म होने के 70 दिन बाद बकरीद मनाई जाती है। इस मौके पर बकरे की कुर्बानी देने का विधान है। आसान शब्दों में कहें तो बकरे की कुर्बानी दी जाती है। आइए, बकरीद पर्व का इतिहास और धार्मिक महत्व जानते हैं-

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    बकरीद का इतिहास

    इस्लाम धर्म के जानकारों की मानें तो पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद ने अपना जीवन खुदा को समर्पित कर दिया था। नित प्रतिदिन खुदा की इबादत करते थे। उनकी इबादत से 'खुदा' बेहद खुश हुए। एक दिन खुदा ने पैगंबर हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही। इसमें खुदा ने पैगंबर हजरत इब्राहिम मोहम्मद से उनकी सबसे कीमती चीज की कुर्बानी मांगी। उस समय उनके लिए सबसे कीमती उनका बेटा ही था, जो उन्हें कई सालों की मन्नतों के बाद मिला था। उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया।

    हजरत इब्राहिम की इबादत से खुदा यानी अल्लाह बेहद खुश हुए। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बेहद प्यार करते थे और उसे कुर्बान होते देख नहीं सकते थे। इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली और बेटे को कुर्बान कर दिया। हालांकि, जब उन्होंने आंखें खोली, तो देखा कि उनका बेटा बगल में खड़ा है और असल में कुर्बान बकरा हुआ। तभी से इस दिन को बकरीद के रूप में मनाया जाने लगा।

    ईद-उल-अजहा का महत्व

    इस्लामिक कैलेंडर का यह अंतिम महीना होता है। इसके बाद नव वर्ष की शुरुआत होती है। इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। इसमें एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा गरीबों एवं जरूरतमंदों को दिया जाता है। तीसरा और अंतिम हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है। देश और दुनिया में बकरीद पर्व पर उत्सव जैसा माहौल रहता है।

    डिसक्लेमर: 'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।'

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