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ऊर्जा: इच्छाशक्ति का प्रभाव- प्रबल इच्छाशक्ति ही मनुष्य की सफलता का मुख्य आधार है, दुर्बल इच्छाशक्ति के कारण मिलती है असफलता

उत्साह सकारात्मक विचार व्यवहार एवं अनुशासन व्यक्ति को सशक्त बनाते हैं। ये इच्छाशक्ति को संबल प्रदान करते हैं। इसी इच्छाशक्ति का विकास ही व्यक्तित्व को समग्र्र उत्कर्ष के शिखर पर पहुंचाता है। अकर्मण्यता इच्छाशक्ति का हनन करती है और मनुष्य जीती बाजी भी हार जाता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 07 Aug 2021 02:42 AM (IST)Updated: Sat, 07 Aug 2021 02:42 AM (IST)
अकर्मण्यता इच्छाशक्ति का हनन करती है और मनुष्य जीती बाजी भी हार जाता है

दुनिया में खेलों का सबसे बड़ा महाकुंभ माना जाने वाला ओलंपिक अब अपने अंतिम पड़ाव पर आ गया है। इसमें विश्व के कोने-कोने से आए चोटी के खिलाड़ियों ने भाग लिया। उसमें कुछ को ही सफलता प्राप्त हुई और तमाम के खाते में असफलता आई। सफलता और असफलता का निर्धारण करने में जिन बिंदुओं की अत्यंत निर्णायक भूमिका मानी गई, उनमें से एक है प्रबल इच्छाशक्ति। जिस स्वप्निल मुकाबले के लिए खिलाड़ी कई साल कड़ा परिश्रम करते हैं, उसे वह इच्छाशक्ति और मानसिक दृढ़ता के अभाव में मात्र कुछ ही पलों में गंवा देते हैं। कहते भी हैं कि युद्ध केवल अस्त्र-शस्त्र से नहीं, बल्कि उत्साह से भी जीता जाता है। प्रबल इच्छाशक्ति ही उत्साह की वास्तविक जननी है।

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नि:संदेह प्रबल इच्छाशक्ति ही मनुष्य की सफलता का मुख्य आधार है। यह प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान है, बस उसे जागृत करने और विकसित करने की आवश्यकता है। आत्मसुधार या व्यक्तित्व का निर्माण इच्छाशक्ति पर ही निर्भर करता है। असफल होने के बाद भी प्रयास करते रहने की लगन ही इच्छाशक्ति का निर्धारण करती है। इच्छाशक्ति के अभाव में योग्यता, अनुकूलता और प्रतिभा किसी काम की नहीं। दुख और असफलता दुर्बल इच्छाशक्ति के कारण ही आते हैं। अतीत को लेकर पछतावा और भविष्य की अनावश्यक चिंता मनुष्य की इच्छाशक्ति पर आघात करते हैं। गलतियों पर चिंतन करने और कुढ़ते रहने से ऊर्जा व्यर्थ होती है और हमें अकर्मण्य बना देती है। यही अकर्मण्यता इच्छाशक्ति का हनन करती है और मनुष्य जीती बाजी भी हार जाता है।

इच्छाशक्ति के अभ्यास की उत्तरोत्तर वृद्धि के लिए ऊर्जा को सकारात्मक, सार्थक कार्यों एवं स्वाध्याय-सत्संग में लगाना चाहिए। उत्साह, सकारात्मक विचार, व्यवहार एवं अनुशासन व्यक्ति को सशक्त बनाते हैं। ये इच्छाशक्ति को संबल प्रदान करते हैं। इसी इच्छाशक्ति का विकास ही व्यक्तित्व को समग्र्र उत्कर्ष के शिखर पर पहुंचाता है।

- शिव मोहन यादव


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