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    Dussehra 2024: यहां जलाया नहीं बल्कि पूजा जाता है रावण, खुद को भाग्यशाली मानते हैं गांव के लोग

    Updated: Fri, 11 Oct 2024 03:13 PM (IST)

    हर साल आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर दशहरा मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से शारदीय नवरात्र के समापन के बाद आता है। ऐसे में इस साल दशहरे का पर्व शनिवार 12 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस त्योहार को सत्य की असत्य पर जीत के रूप में भी देखा जाता है क्योंकि इस तिथि पर भगवान श्रीराम ने रावण को परास्त किया था।

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    Dussehra 2024 यहां जलाया नहीं बल्कि पूजा जाता है रावण।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। रावण, रामायण का नकारात्मक लेकिन एक महत्वपूर्ण पात्र रहा है। ऐसा माना जाता है कि रावण बहुत बलशाली और ज्ञानी था। लेकिन उसने अधर्म का साथ दिया, जिस कारण उसे भगवान श्रीराम की हाथों मृत्यु प्राप्त हुई। दशहरे का पर्व भगवान श्रीराम की विजय के रूप में मनाया जाता है और इस दिन पर रावण दहन किया जाता है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है।

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    मिलता है यह कारण

    आज हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के बागपत जिला में स्थित बड़ागांव की। यह गांव अपने आप में इसलिए भी अनोखा है, क्योंकि यहां के लोग रावण के पुतले का दहन नहीं करते, बल्कि उसकी पूजा करते हैं। इसके पीछे का कारण भी काफी खास है। रावण दहन न करने के पीछे एक प्रचलित कथा मिलती है। जिसके अनुसार, एक बार रावण मनसा देवी की मूर्ति को अपने साथ ले जा रहा था। तब देवी मनसा ने उससे वचन लिया कि वह जहां भी मूर्ति को रखेगा, देवी वहीं स्थापित हो जाएंगी।

    यहां स्थापित की मूर्ति

    जब रावण, देवी की मूर्ति को लेकर जा रहा था, तो उसने बड़ागांव में ही इस मूर्ति को स्थापित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि तब से ही मां मनसा की मूर्ति यहां स्थापित है, जहां आज मनसा देवी का मंदिर देखने को मिलता है। इस मंदिर की मान्यता काफी दूर-दूर तक फैली हुई है। इसी के साथ इस गांव के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। साथ ही गांव के लोग इसे अपना सौभाग्य मानते हैं कि रावण द्वारा स्थापित की गई मनसा देवी की मूर्ति उनके गांव में स्थापित है।

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    यहां भी नहीं होता रावण दहन

    मध्य प्रदेश में स्थित मंदसौर में भी दशहरे के दिन रावण दहन या रावण वध नहीं किया जाता। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह रावण की पत्नी यानी मंदोदरी का मायका था और उसी के नाम से इस स्थान को मंदसौर के नाम से जाना जाता है। यही कारण है कि इस स्थान के लोग रावण को अपना दामाद मानते हैं और दशहरे के दिन रावण दहन नहीं करते।

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    अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों/दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। दैनिक जागरण तथा जागरण न्यू मीडिया अंधविश्वास के खिलाफ है।