क्या आप जानते हैं बौध धर्म के उद्देश्य क्या है
हम अपने जन्म से मरण तक जो भी करते हैं उस सबका एक ही अंतिम मकसद होता है- स्थाई खुशी या निर्वाण अत: सत्य की खोज- ‘निर्वाण या स्थाई ख़ुशी’ के लिए परमावश्यक है।
भागवान बुद्ध ने कहा है :- “किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये सदियों से चली आ रही हैं,किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये हमारे बुजुर्गो ने कही हैं,किसी चीज को इस लिए मत मानो की ये हमारे लोगो ने कही हैं,किसी चीज को मानने से पहले यह सोचो की क्या ये सही हैं,किसी चीज को मानने से पहले ये सोचो की क्या इससे आप का विकास संभव है, किसी चीज को मानने से पहले उसको बुद्धि की कसोटी पर कसो और आप को अच्छा लगे तो ही मानो नहीं तो मत मानो…”
अन्य धर्मों की तरह बौध धर्म/धम्म का उद्देश्य किस ईश्वर और उसकी किताब के बहाने सामाजिक संगठन बनाकर व्यक्ति को ईश्वरर भरोसे छोड़ना नहीं है अपितु उसे इस लायक बनाना है की वो अपना भला खुद कर सके इसीलिए भगवन बुद्ध कहते हैं “अतः दीपो भव” अर्थात अपना दीपक खुद बनो किसी पर भी निर्भर न रहो| बौद्ध धम्म की उत्पति ही इसलिए हुई की प्रत्येक व्यक्ति मनोवैज्ञानिक रूप से इस काबिल बन जाये की वो नेतिकता के मूल उदेश्य को समझ सके, क्योंकि यह सर्वमान्य है की एक व्यक्ति में सभी कुछ योग्यता होती है| बस इस योग्यता को बहार किस प्रकार से या किस माध्यम से निकाला जाये यह मुख्य है| और सिर्फ शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो इस योग्यता को बाहर निकलती है|
मनुष्य जिन दु:खों से पीड़ित है, उनमें बहुत बड़ा हिस्सा ऐसे दु:खों का है, जिन्हें मनुष्य ने अपने अज्ञान, ग़लत ज्ञान या मिथ्या दृष्टियों से पैदा कर लिया हैं उन दु:खों का प्रहाण अपने सही ज्ञान द्वारा ही सम्भव है, किसी के आशीर्वाद या वरदान, देवपूजा,यग,ब्रह्मणि कर्मकांडों, ज्योतिष आदि से उन्हें दूर नहीं किया जा सकता। सत्य या यथार्थता का ज्ञान ही सम्यक ज्ञान है। हम अपने जन्म से मरण तक जो भी करते हैं उस सबका एक ही अंतिम मकसद होता है- स्थाई खुशी या निर्वाण अत: सत्य की खोज- ‘निर्वाण या स्थाई ख़ुशी’ के लिए परमावश्यक है। खोज अज्ञात सत्य की ही की जा सकती है,यदि सत्य किसी शास्त्र, आगम या उपदेशक द्वारा ज्ञात हो गया है तो उसकी खोज नहीं। अत: बुद्ध ने अपने पूर्ववर्ती लोगों द्वारा या परम्परा द्वारा बताए सत्य को और वेद पुराण जैसे हर काल्पनिक धर्म ग्रंथों को नकार दिया और अपने लिए नए सिरे से सत्य की खोज की। बुद्ध स्वयं कहीं प्रतिबद्ध नहीं हुए और न तो अपने शिष्यों को उन्होंने कहीं बांधा। उन्होंने कहा कि मेरी बात को भी इसलिए चुपचाप न मान लो कि उसे बुद्ध ने कही है। उस पर भी सन्देह करो और विविध परीक्षाओं द्वारा उसकी परीक्षा करो। जीवन की कसौटी पर उन्हें परखो, अपने अनुभवों से मिलान करो, यदि तुम्हें सही जान पड़े तो स्वीकार करो, अन्यथा छोड़ दो।
यही कारण था कि उनका धर्म रहस्याडम्बरों से मुक्त, मानवीय संवेदनाओं से ओतप्रोत एवं हृदय को सीधे स्पर्श करता था। संसार में केवल गौतम बुद्ध का सिद्धांत ही ऐसा है तो हर युग में हर परिस्थिथि में एक सा ही लाभकारी है | ऐसा इसलिए है क्योंकि बौध धम्म में ऐसा कुछ भी स्वीकार नहीं होता जिसका प्रमाण उपलब्ध न हो, यही बौध धम्म का सार है |
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