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Narak Chaturdashi 2018: जाने क्‍या है रिश्ता श्री कृष्ण से नरक चतुर्दशी की कथा का

दीपावली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी होती है, इसे छोटी दीवाली भी कहते हैं। क्यों ये दिन श्रीकृष्‍ण से संबंधित है इस बारे में एक प्रेणनादायी कथा प्रसिद्ध है।

By Molly SethEdited By: Published: Sun, 04 Nov 2018 03:50 PM (IST)Updated: Tue, 06 Nov 2018 12:45 PM (IST)
Narak Chaturdashi 2018: जाने क्‍या है रिश्ता श्री कृष्ण से नरक चतुर्दशी की कथा का

श्री कृष्‍ण ने किया नरका सुर का वध

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कहते हैं कि नरक चतुर्दशी के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है। इस कथा के अनुसार कृष्ण ने नरकासुर नाम के अत्यंत क्रूर राक्षस को दिवाली से पहले आने वाली चतुर्दशी के दिन मार दिया था। असल में यह नरकासुर की ही इच्छा थी की यह चतुर्दशी उसकी बुराइयों के अंत होने की वजह से एक उत्सव की रूप में मनाई जाए। इसीलिए दीवाली को नरक चतुदर्शी के रूप में भी मनाया जाता है। नरक एक बहुत अच्छे परिवार से था। कहा जाता है कि वह भगवान विष्णु का पुत्र था। विष्णु जी ने जब जंगली शूकर यानी वराह अवतार लिया, तब नरक उनके पुत्र के रूप में पैदा हुआ। इसलिए उसमें कुछ खास तरह की दुष्‍ट प्रवृत्तियां थीं। सबसे बड़ी बात कि नरक की दोस्ती मुरा असुर से हो गई, जो बाद में उसका सेनापति बना। दोनों ने साथ मिल कर कई युद्ध लड़े और हजारों को मारा। कृष्ण ने पहले मुरा को मारा। मुरा को मारने के बाद ही कृष्ण का नाम मुरारी हुआ। कहा जाता है कि मुरा के पास कुछ ऐसी जादुई शक्तियां थीं, जिनकी वजह से कोई भी व्यक्ति उसके सामने युद्ध में नहीं ठहर सकता था। एक बार मुरा खत्म हो गया तो नरक से निपटना आसान था।

बुराई पर अच्‍छाई को महत्‍व देने का संदेश 

कहते हैं कि नरक ने प्रार्थना की थी कि उसकी मृत्यु का उत्सव मनाया जाए। बहुत से लोगों को मुत्यु के पलों में ही अपनी सीमाओं का अहसास होता है। अगर उन्हें पहले ही इसका अहसास हो जाए तो जीवन बेहतर हो सकता है, लेकिन ज्यादातर लोग अपने आखिरी पलों का इंतजार करते हैं। नरक भी उनमें से एक था। अपनी मृत्यु के पलों में अचानक उसे अहसास हुआ कि उसने अपना जीवन कैसे बरबाद कर दिया और अब तक अपनी जिंदगी के साथ क्या कर रहा था। उसने कृष्ण से प्रार्थना की, ‘आप आज सिर्फ मुझे ही नहीं मार रहे, बल्कि मैंने अब तक जो भी बुराइयां या गलत काम किए हैं, उन्हें भी खत्म कर रहे हैं। इस मौके पर उत्सव होना चाहिए।’ इसलिए नरक चतुर्दशी को एक राक्षस की बुराइयों के खत्म होने का उत्सव नहीं मनाना चाहिए, बल्कि आपको अपने भीतर की तमाम बुराइयों के खत्म होने का उत्सव मनाना चाहिए। नरक को तो कृष्ण ने बता दिया था कि मैं तुम्हें मारने वाला हूं, लेकिन जरूरी नहीं कि कोई आपको भी यह बताए। इस बात को समझें कि नरकचौदस इसीलिए होता है ताकि हम सब पापों के अंत का उत्सव मना सकें। नरक के एक अच्छा जन्म पाने के बावजूद फिर बुराई में डूबने की यह कथा महत्वपूर्ण है। 

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