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शनि और मंगल करें सुंदरकांड का पाठ, शनि दशा में भी मिलता है फायदा

शनिवार को शनिदेव के अलवा हनुमान जी की पूजा से बरकत मिलती है। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सर्वश्रेष्ठ पाठ सुंदरकांड का माना जाता है। सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Published: Sat, 03 Oct 2020 09:45 AM (IST)Updated: Sun, 04 Oct 2020 09:12 AM (IST)
शनि और मंगल करें सुंदरकांड का पाठ, शनि दशा में भी मिलता है फायदा
शनि और मंगल करें सुंदरकांड का पाठ, शनि दशा में भी मिलता है फायदा

शनिवार को शनिदेव के अलवा हनुमान जी की पूजा से बरकत मिलती है। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए सर्वश्रेष्ठ पाठ सुंदरकांड का माना जाता है। सुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। सुंदरकांड गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस के सात अध्यायों में से पांचवा अध्याय है। रामचरित मानस के सभी अध्याय भगवान की भक्ति के लिए हैंए लेकिन सुंदरकांड का महत्व अधिक बताया गया है।

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सुंदरकांड का महत्व:

जहां एक ओर पूर्ण रामचरितमानस में भगवान के गुणों को दर्शाया गया है। उनकी महिमा बताई गई है लेकिन दूसरी ओर रामचरितमानस के सुंदरकांड की कथा सबसे अलग और निराली है। इसमें भगवान राम के गुणों की नहीं बल्कि उनके भक्त के गुणों और उनकी विजय के बारे में बताया गया है।

ये है लाभ:

ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया किसुंदरकांड का पाठ करने वाले भक्त को हनुमान जी बल प्रदान करते हैं। उसके आसपास भी नकारात्मक शक्ति भटक नहीं सकती। यह भी माना जाता है कि जब भक्त का आत्मविश्वास कम हो जाए या जीवन में कोई काम ना बन रहा हो तो सुंदरकांड का पाठ करने से सभी काम अपने आप ही बनने लगते हैं।

शनिदशा में लाभ:

शनिदेव स्वयं हनुमानजी के भक्त हैं और उनसे भय खाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जिन जातकों पर शनि की ढय्या फिर साढ़ेसाती चल रही होए वे अगर रोजाना सुंदरकांड का पाठ करें तो शनि की महादशा का प्रभाव कम होता है। शनि बिना कुछ बुरा किए इस पूरी महादशा की अवधि को गुजार देते हैं।

सफलता के सूत्र:

यदि संभव हो तो विद्यार्थियों को सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। यह पाठ उनके भीतर आत्मविश्वास को जगाएगा और उन्हें सफलता के और करीब ले जाएगा। आपको शायद मालूम ना होए लेकिन यदि आप सुंदरकांड के पाठ की पंक्तियों के अर्थ जानेंगे तो आपको यह मालूम होगा कि इसमें जीवन की सफलता के सूत्र भी बताए गए हैं। इसलिए यह राय दी जाती है कि यदि रामचरित्मानस का पूर्ण पाठ कोई ना कर पाए तो कम से कम सुंदरकांड का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए।

डिसक्लेमर

'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। '

 


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