Deepak Raag: क्या सच में भगवान शिव के मुख से निकले 'दीपक राग' के गायन से जल उठते हैं दीये ?
Deepak Raag संगीत शास्त्र के जानकारों की मानें तो दीपक राग देवों के देव महादेव के मुख से उत्पन्न हुआ है। अत इसमें शिव समान तेज है। इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि प्राचीन समय में सम्राट विक्रमादित्य को भी दीपक राग गाने की विद्या आती थी। इस प्रसंग का उल्लेख सम्राट विक्रमादित्य की जीवनी में है।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क। Deepak Raag: भगवान शिव सृष्टि के रचयिता हैं। उन्हें अनादि कहा जाता है। अनादि का आशय है-जब कुछ नहीं था, तब भी भगवान शिव थे। जब कुछ नहीं रहेगा, तब भी भगवान शिव रहेंगे। समस्त ब्रह्मांड भगवान शिव में समाया है। आसान शब्दों में कहें तो पूरे ब्रह्मांड की रचना भगवान शिव ने की है। उनके द्वारा ही सब कुछ संचालित है। धर्म ग्रंथों में निहित है कि संगीत के जनक भगवान शंकर के मुख से 'दीपक राग' उत्पन्न हुआ है। 'दीपक राग' भारतीय शास्त्रीय संगीत शैलियों में एक प्रमुख राग शैली है। इसके स्वामी सूर्य और अग्नि देव हैं। इस राग शैली के गायन से अग्नि प्रज्वलित हो जाती है। कहते हैं कि 'दीपक राग' के गायन से घर और नगर में रखे सभी दीये जल उठते हैं। क्या सच में ऐसा संभव है? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
दीपक राग
संगीत शास्त्र के जानकारों की मानें तो 'दीपक राग' महादेव के मुख से उत्पन्न हुआ है। अत: इसमें शिव समान तेज है। इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि प्राचीन समय में सम्राट विक्रमादित्य को भी 'दीपक राग' गाने की विद्या आती थी। इस प्रसंग का उल्लेख सम्राट विक्रमादित्य की जीवनी में है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार ज्योतिष शास्त्र विषय पर सम्राट विक्रमादित्य और धर्म पंडितों के मध्य बहस छिड़ गई। धर्म पंडितों ने कुंडली देखकर सम्राट विक्रमादित्य को शनि उपासना करने की सलाह दी। हालांकि, सम्राट विक्रमादित्य ने यह कहकर धर्म पंडितों की याचिका ठुकरा दी कि विधि के विधान के अनुरूप सब कुछ होता है। इसमें शनि की कोई भूमिका नहीं होती है। इस समय उन्होंने शनि देव को देख लेने की भी चुनौती दी।
किसी काल खंड में शनि देव ने सम्राट विक्रमादित्य की कठिन परीक्षा ली। इस दौरान एक बार विषम परिस्थिति में रात के समय सम्राट विक्रमादित्य ने 'दीपक राग' गाकर दीये जलाए थे। तत्कालीन समय में नगर की राजकुमारी ने प्रतिज्ञा ली थी कि जिस व्यक्ति ने 'दीपक राग' की विद्या हासिल की होगी। वह उससे ही शादी करेगी। जब नगर के सभी दीये सम्राट विक्रमादित्य द्वारा गाये 'दीपक राग' से जल उठे, तो राजकुमारी ने सम्राट विक्रमादित्य से शादी की। अतः शास्त्रों में 'दीपक राग' के गायन से दीये जलने की प्रमाणिकता है। आधुनिक समय में तानसेन 'दीपक राग' को ठीक से गा सकते थे।
इतिहासकारों की मानें तो असमय 'दीपक राग' गाने की वजह से तानसेन का शरीर ज्वर से पीड़ित हो गया। उस समय उनकी पुत्री ने 'मेघ मल्हार' गाकर पिता के प्राण की रक्षा थी। हालांकि, तानसेन पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाए। कुछ वर्षों के पश्चात तानसेन की मृत्यु हो गई। ऐसा कहा जाता है कि 'दीपक राग' के गायन के चलते उत्पन्न ज्वर से तानसेन की मृत्यु हुई थी। 'दीपक राग' गाने वाले संगीत सम्राट तानसेन अंतिम व्यक्ति थे। वर्तमान समय में 'दीपक राग' विलुप्तावस्था में है।
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