Gyanganj: क्या सच में टेलीपैथी के जरिए अपने गुरुओं से बात करते हैं ज्ञानगंज के तपस्वी?
Gyanganj धर्म शास्त्रों में निहित है कि ज्ञानगंज का निर्माण वास्तुकला के निर्माता विश्वकर्मा जी ने की है। इस पवित्र स्थल पर एक आश्रम भी है। जहां भगवान श्रीराम श्रीकृष्ण और भगवान बुद्ध पंचतत्व रूप में उपस्थित हैं। साथ ही सिद्ध पुरुषों को भी भौतिक रूपों में देखा जा सकता है। ज्ञानगंज में स्थित आश्रम में सिद्ध पुरुष तपस्या और ध्यान करते हैं।

नई दिल्ली, अध्यात्म डेस्क | Gyanganj: देवों के देव महादेव का निवास स्थान कैलाश में है। खगोलीय मापदंड के अनुसार, वर्तमान समय में कैलाश पर्वत तिब्बत में है। इस पर्वत के पश्चिम में मानसरोवर और दक्षिण में राक्षसताल है। इस पर्वत श्रृंखला से कई महत्वपूर्ण नदियां निकलती हैं। सनातन धर्म ग्रंथों में निहित है कि सृष्टि के रचयिता भगवान शिव कैलाश में वास करते हैं। इस पर्वत पर सामान्य मानव पहुंच नहीं सकता है। कई बार कोशिश की गई है। हालांकि, कैलाश पर्वत पर चढ़ने में पर्वतारोही को अब तक सफलता नहीं मिली है। इस पर्वत के आसपास कई अदृश्य लोक हैं। इनमें एक लोक ज्ञानगंज है। इस स्थान पर ज्ञान की गंगा बहती है। आसान शब्दों में कहें तो ज्ञानगंज में केवल सिद्ध पुरुष रहते हैं। सामान्य इंसान की पहुंच से यह परे है। हम केवल ज्ञानगंज की कल्पना कर सकते हैं। इस पवित्र स्थान पर महज सिद्ध पुरुष जा सकते हैं। जानकारों की मानें तो ज्ञानगंज में समय ठहरा हुआ है। अतः ज्ञानगंज में रहने वाले सिद्ध पुरुषों को अमरता का वरदान प्राप्त है। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
ज्ञानगंज
धर्म शास्त्रों में निहित है कि ज्ञानगंज का निर्माण वास्तुकला के निर्माता विश्वकर्मा जी ने की है। इस पवित्र स्थल पर एक आश्रम भी है। जहां भगवान श्रीराम, श्रीकृष्ण, भगवान बुद्ध पंचतत्व रूप में उपस्थित हैं। साथ ही सिद्ध पुरुषों को भी भौतिक रूपों में देखा जा सकता है। ज्ञानगंज में स्थित आश्रम में सिद्ध पुरुष तपस्या और ध्यान करते हैं। इतिहासकारों का कहना है कि वर्तमान समय में स्वामी विशुद्धानंद परमहंस सर्वप्रथम ज्ञानगंज पहुंचे थे। ऐसा भी कहा जाता है कि ज्ञानगंज के तपस्वी टेलीपैथी संदेश के जरिए कैलाश के आसपास स्थित अदृश्य लोकों में उपस्थित गुरुओं से बात करते हैं।
टेलीपैथी क्या है ?
सनातन धर्म शास्त्रों में दिव्य-दृष्टि का उल्लेख है। इस विद्या के जरिए ऋषि-मुनि न केवल अपने गुरुओं से बातचीत करते थे, बल्कि आम जनमानस को भविष्य में होने वाली घटनाओं से भी अवगत करते थे। वर्तमान समय में दिव्य दृष्टि को टेलीपैथी कहा जाता है। साल 1882 में फैड्रिक डब्लू एच मायर्स ने दिव्य दृष्टि को टेलीपैथी नाम दिया है। इसके कई प्रकार हैं। इस तकनीक के जरिए एक व्यक्ति दूर बैठकर दूसरे व्यक्ति के मनोभाव को पढ़ सकता है। आसान शब्दों में कहें तो दिव्य दृष्टि के जरिए अलग-अलग स्थानों पर बैठे दो व्यक्ति एक दूसरे से बातचीत कर सकते हैं।
इस बारे में परामनोविज्ञान का मानना है कि टेलीपैथी के जरिए दूर बैठे व्यक्ति के मस्तिष्क से संपर्क कर बातचीत की जा सकती है। साथ ही व्यक्ति के मनोभाव को भी ज्ञात किया किया जा सकता है। हालांकि, सामान्य इंसान के लिए यह संभव नहीं है। इसके लिए कठिन तपस्या यानी ध्यान की आवश्यकता है। तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि पूर्व में ऋषि मुनि दिव्य-दृष्टि से सत्य में भविष्यवाणी करते थे। अतः इसकी संभावना अधिक है कि कैलाश पर्वत के आसपास अदृश्य लोक में उपस्थित तपस्वी टेलीपैथी संदेश के जरिए अपने गुरुओं से बात करते हैं।
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