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    Devshayani Ekadashi 2025: देवशयनी एकादशी पर करें ये एक काम, काम में आ रही बाधा होगी दूर

    Updated: Mon, 30 Jun 2025 04:02 PM (IST)

    देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2025) हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं जिसके बाद चातुर्मास शुरू होता है। इस दौरान भगवान शिव पृथ्वी का कार्यभार संभालते हैं। मान्यता है कि इस समय भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा करनी चाहिए। इस साल देवशयनी एकादशी 6 जुलाई को मनाई जाएगी।

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    Devshayani Ekadashi 2025: देवशयनी एकादशी पर करें इस स्तोत्र का पाठ।

    धर्म डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में देवशयनी एकादशी को बहुत पुण्यदायी माना जाता है। इसी तिथि पर भगवान विष्णु क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं, जिसे चातुर्मास के नाम से जाना जाता है। श्री हरि के योग निद्रा में जाने के बाद भोलेनाथ पूरे धरती का कार्यभार संभालते हैं। कहते हैं कि इस दौरान नारायण के साथ भोलेनाथ की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही ''मृत्युंजय स्तोत्र'' का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से काम में आ रही मुश्किलें दूर होती हैं।

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    हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2025) का व्रत 06 जुलाई को रखा जाएगा।

    ॥ शिव मृत्युञ्जय स्तोत्र ॥

    रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं

    शिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।

    क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवंदितं

    चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥1॥

    पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजद्वयशोभितं

    भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।

    भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं

    चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥2॥

    मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं

    पंकजासनपद्मलोचनपूजितांगघ्रिसरोरुहम्।

    देवसिद्धतरंगिणी करसिक्तशीतजटाधरं

    चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥3॥

    कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरकुण्डलं वृषवाहनं

    नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।

    अंधकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं

    चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥4॥

    यक्षराजसखं भगाक्षिहरं भुजंगविभूषणं

    शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।

    क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं

    चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥5॥

    भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं

    दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।

    भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं

    चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥6॥

    भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं

    सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।

    भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं

    चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥7॥

    विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं

    संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।

    क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमाव्रतं

    चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:॥8॥

    रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।

    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥9॥

    कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्।

    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥10॥

    नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरूपद्रवम्।

    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥11॥

    वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।

    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥12॥

    देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्।

    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥13॥

    अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधरं हरम्।

    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥14॥

    आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्।

    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥15॥

    स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्।

    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति॥16॥

    ॥ इति श्रीपद्मपुराणान्तर्गत उत्तरखण्डे श्रीमृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्।॥

    ।।शिव जी की आरती।। (Lord Shiv Aarti)

    जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

    ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥

    एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

    हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

    दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

    त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥

    अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

    चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

    श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

    सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥

    कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

    जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

    ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

    प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

    काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

    नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

    त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।

    कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

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