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आध्यात्मिकता का करें विकास

अध्यात्म जीवन के उच्च आदर्शों को विकसित करना और हमें बेहतर इंसान बनना सिखाता है। आध्यात्मिक पहलू का विकास करने के लिए यह जरूरी है कि हम अध्यात्म की शिक्षा छोटी उम्र से ही बच्चों को देना शुरू करें ताकि वे बड़े होकर एक अच्छे इंसान बन सकें।

By Kartikey TiwariEdited By: Published: Tue, 21 Sep 2021 11:36 AM (IST)Updated: Tue, 21 Sep 2021 11:36 AM (IST)
अध्यात्म जीवन के उच्च आदर्शों को विकसित करना और हमें बेहतर इंसान बनना सिखाता है।

भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में हुए विकास से हमने बहुत से सुविधाजनक साधन (उपकरण) खोज लिए हैं। इनके उपयोग से हमें अधिक समय मिलना चाहिए था, लेकिन इन सुविधाओं में हम इतने ज्यादा फंस गए हैं कि समय की कमी पड़ गई है। हमें इतना भी वक्त नहीं मिलता कि हम अपने अंदर झांक सकें और अपने जीवन के उद्देश्य को परख सकें। इस प्रकार हम आध्यात्मिकता से दूर हो रहे हैं।

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आज हम लोगों का जीवन इतना व्यस्त हो गया है कि हमें आराम के लिए भी समय नहीं मिलता। एक दिन हम खुद से यह सवाल करते हैं कि क्या हमारे जीवन का उद्देश्य केवल जन्म लेना, बड़ा होना, अपनी जिम्मेदारियों को निभाना और मृत्यु को प्राप्त करना ही है या इसके अलावा भी कुछ और है?

संत-महापुरुष कहते हैं कि मनुष्य जीवन के तीन पहलू हैं-1. बौद्धिक, 2. शारीरिक और 3. आध्यात्मिक। हमें इन तीनों पहलुओं को ध्यान में रखते हुए खुद को आगे बढ़ाना चाहिए। हम बौद्धिक और शारीरिक विकास में तो बहुत प्रगति कर चुके हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हम अपने आध्यात्मिक पहलू को भूल गए हैं। हम खुशनसीब हैं कि हमने मनुष्य जन्म पाया है। अपने इस जीवन में यदि हम अपने आध्यात्मिक विकास के लिए समय नहीं निकालेंगे तो हम अपना ध्येय पूरा नहीं कर सकेंगे।

अध्यात्म जीवन के उच्च आदर्शों को विकसित करना और हमें बेहतर इंसान बनना सिखाता है। आध्यात्मिक पहलू का विकास करने के लिए यह जरूरी है कि हम अध्यात्म की शिक्षा छोटी उम्र से ही बच्चों को देना शुरू करें, ताकि वे बड़े होकर एक अच्छे इंसान बन सकें। आध्यात्मिकता एक-दूसरे के लिए प्रेम और दया का भाव जगाती है। दूसरों की मदद करना सिखाती है। ध्यान का अभ्यास एक ऐसा तरीका है, जिसके द्वारा अपने अंदर सद्गुणों को विकसित कर सकते हैं। यही आध्यात्मिकता है। ध्यान-अभ्यास के जरिये हम न केवल जीवन के उच्च आदर्शों को जान पाते हैं, बल्कि अपने भीतर रहने वाली आत्मा को भी पहचान लेते हैं। फिर परमात्मा को पहचानना कठिन नहीं रहता।

ध्यान का अभ्यास अंतर्मुख होने का रास्ता है, जिसका अर्थ है कि हम अपना ध्यान बाहर से हटाकर अपने भीतर टिकाएं। अपना आत्मावलोकन करें और भीतर के संगीत से जुड़कर शांति और आनंद को प्राप्त करें। प्रतिदिन थोड़ी देर ध्यान का अभ्यास करने से हमारी एकाग्रता बढ़ जाती है। हम हर कार्य को कुशलता से और कम समय में कर पाते हैं। इससे सभी इंसानों में प्रभु के दर्शन होने लगेंगे। हमारे दिलों में पूरे संसार के लिए प्रेम और दया का भाव जाग्रत हो जाएगा।

संत राजिन्दर सिंह, आध्यात्मिक गुरु


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